नीतश के समाजवाद पर भारी पड रहा है राजनीतिक ईष्या और संप्रदायवाद-गौतम चैधरी

पटना, भारतीय जनता पार्टी की 27 अक्टूबर वाली रैली पर एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुखर दिख रहे हैं। हालिया बयान का कुल लब्बो लुआब पटना रैली की विफलता साबित करना है। नीतीश के इस बयान को प्रेक्षक डपोरशंखी बता रहे हैं। इससे पहले भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री के घोषित दावेदार नरेन्द्र भाई दामोदर भाई मोदी रैली में मारे गये लोगों में से चार के घरों पर न केवल दस्तक दे आये अपितु पांच लाख रूपये का चेक भी सैंप आये हैं। इसे मोदी की कार्य कुशलता से जोड कर देखा जा रहा है। मोदी को जानने वालों की मानें तो मोदी मुद्दों को भुनाना और उसका  राजनीतिक फायदा उठाना खूब जानते हैं। संक्षेप में कहें तो मोदी की रणनीति बिहार में रंग भी लाने लगी है। इसे भले नीतीश कुमार हल्के में लेने का दिखावा कर रहे हों, लेकिन अंदरखने वे भी हिले हुए हैं, बावजूद अपने बडे भाई लालू यादव की तरह डपोरशंखी बयान देने से बाज नहीं आ रहे हैं।

पटना, भाजपा की रैली में बम विस्फोट को समाचार माध्यम और भाजपा का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों ने बडी चालाकी से नेपथ्य में ढकेलने का प्रयास किया है। भाजपा रैली में हुए विस्फोट को महज हिन्दुओं के प्रति मुस्लमानों का आक्रोश, नरेन्द्र मोदी के प्रति मुस्लमानों का गुस्सा और भारतीय जनता पार्टी के कुप्रबंधन को प्रचारित किया जा रहा है। यही नहीं कई प्रेक्षक इसे कानून व्यवस्था का दोष भी साबित कर रहे हैं। कतिपय ये तामम करण विस्फोट के लिए जिम्मेबार रहे होंगे, लेकिन इस विस्फोट के लिए कुछ खास कारण भी जिम्मेदार है। साथ ही रैली को लेकर सत्तापक्ष की ईष्या साफ झलकती है। पटना में ऐसी रैलियां होती रही है। पटना में इससे पहले खुद नीतीश कुमार रैली कर चुके हैं। इसके अलावा बिहार में भाजपा के अलावे नीतीश कुमार की पार्टी के लगातार कार्यक्रम हो रहे हैं, लेकिन ऐसे किसी कार्यक्रमों में इस प्रकार की घटना नहीं घटी, पर भारतीय जनता पार्टी की इसी रैली में लगातार 15 बम क्यों फोडे गये? भाजपा के नेताओं का आरोप है कि यह सत्ता पक्ष के ढील और सह का परिणाम है।

हाल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि भाजपा के लोग मेरे उपर अरोप लगा रहे हैं कि वे मामले को लेकर गैरजिम्मेदार और संवेदनहीन हैं, तो क्या हम भाजपा की रैली के लिए डंडा लेकर गांधी मैदान में खडे रहते। नीतीश कुमार ने भाजपा की रैली में हुए बम विस्फोट को रैली की सफलता के साथ जोडा दिया और कहा कि बम विस्फोट के कारण भाजपा की रैली सफल हो गयी। इसलिए भाजपा के लोगों को आतंकवादियों को धन्यवाद देना चाहिए। इस प्रकार का गैर-जिम्मेदार बयान किसी जमाने में राष्ट्रीय जाना दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव दिया करते थे। फिर नीतीश कुमार समाजवादी संरचना और प्रशिण की बात भी करते हैं। नीतीश के बयान और समाजवादी स्वाभिमान की हवा पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव आर. के. सिंह ने निकाल दी है। विगत दिनों पटना रैली में हुए बम विस्फोट पर अपनी प्रतिक्रिया में सिंह ने कहा कि हुजी आतंकवादी याशिन भटकल को पकडने के लिए पहले गृह मंत्रालय ने बिहार सरकार से संपर्क किया, लेकिन बिहार सरकार ने भटकल को पकडने से मना कर दिया। बिहार सरकार के मना करने के बाद बाध्य होकर केन्द्रीय गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय जांच अभिकरण, एनआईए की टीम बिहार भेजनी पडी और भटकल पकडा गया। यही नहीं बिहार में आतंकवादियों के सूत्र हैं। दरभंगा, मधुवनी, सीतामढी, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में भटकल ने अपने जाल बिछाए लेकिन बिहार सरकार ने भटकल के खिलाफ न तो किसी प्रकार की कोई प्राथमीकी दर्ज की और न ही भटकल की कस्टली ली। इस मामले में नीतीश कुमार का समाजवाद देखते ही बनता है।

भाजपा की रैली को लेकर भाजपा के नेता रविशंकर प्रसाद ने बिहार पुलिस पर अरोप लगया है कि रैली की सुरक्षा को लेकर पुलिस प्रदेश भाजपा को आस्वस्त कर चुकी थी बावजूद रैली स्थल से लेकर पटना स्टेशन तक 15 बम फटे। रैली में सुरक्षा के अलावे त्वरित स्वास्थ्य की सुविधा होनी चाहिए थी लेकिन वहां वह भी नहीं था। एक ओर भाजपा कार्यकत्र्ता मारे गये लोगों को उठा रहे थे और घायलों को अस्पताल पहुंचा रहे थे तो दूसरी ओर पुलिस और प्रशासन तमाशा देख रही थी। बेशक नीतीश कुमार अपना कार्यक्रम छोड कर वापस पटना आ गये लेकिन सुरक्षा में चूक पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। इधर बम फोडने वालों का सरगना नीतीश की पार्टी के नेता का भतीजा है, उधर आतंकियों को टिकाने वाला बिहार सरकार के सांख्यीकि विभाग का अधिकारी है। फिर पकडे गये आतंकवादी को जब बिहार पुलिस अपने अभिरक्षण में लेती है तो वह भागने में सफल हो जाता है और उसे पुनः बिहार पुलिस नहीं एनआईए को पकडना पडता है। इसे क्या कहा जाना चाहिए? यदि नीतीश और उनके प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लग रहा है तो उसके खिलाफ नीतश के पास जवाब देने के लिए महज गाल बजाने के सिवाय और कुछ नहीं है।

पटना रैली के बम विस्फोट पर नीतीश यही कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार ने उन्हें कोई गुप्त सूचना नहीं दी। हालाकि बाद में केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार सिंदे ने नीतीश कुमार के बयान का खंडन किया और कहा कि केन्द्र ने आतंकी घटना से संबंधित रपट बिहार सरकार को दी थी। यहां यह भी ध्यान देने योज्ञ है कि आखिर बिहार सरकार की गुप्तचर संस्था क्या कर रही थी? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां रैली होती है वहां सुरक्षा के इंतजाम तो होते ही हैं, वहां त्वरित चिकित्सा सुविधा भी होती है। अगर किसी ने गांधी मैदान रैली में हुए बम धमाकों की दूरदर्शन लघु-चित्र देखा होगा तो वहां साफ दिखता है कि बम विस्फोट से घायल लोगों को खुद भाजपा कार्यकत्र्ता अस्पताल ले जा रहे थे और पुलिस और सुरक्षा अधिकारी गांधी मैदान के रैलिंग की तफतीश में लगे हैं। इससे पहले जब गांधी मैदान में ही नीतीश कुमार की रैली हुई थी तो पानी और पकवान से लेकर चिकित्सा सुविधा तक सरकारी थी लेकिन भाजपा की रैली में सब नदारत। यह संकेत है कि नीतीश या नीतीश प्रशासन के मन में कही न कही दलगत ईष्या काम कर रही थी।

बिहार में बडी तेजी से अरबी पैसा आ रहा है। बिहार के तीन मुस्लिम नेता विगत कई वर्षों से डबल जासूस के रूप में काम कर रहे हैं। एक नेता तो कांग्रेस में बहुत महत्वपूर्ण ओहदे पर हैं। वे आजकल ज्यादा मुखर हैं। इसके पीछे भी उनकी रणनीति है कि आने वाले समय में लोगों को यह बताने में आसानी होगी कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आवाज बुलंद की इसलिए उन्हें पाकिस्तानी जासूसी संस्था के साथ जोडा जा रहा है। दूसरे नेता राष्ट्रीय जानता दल के हैं। आजकल वे दरभंगा में शैक्षणिक संस्थान खोल रहे हैं। तीसरे नेता जदयू में हैंं। ये तीनों चाहे किसी पार्टी में रहे लेकिन इनकी रणनीति इकट्ठे बनती है। ये तीनों नेता उत्तर बिहार से संबंधित हैं। इन तीनों के संरक्षण में ही दरभंगा, मधुवनी, सीतामढी, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में जिहादी आतंकवाद का विस्तार हुआ है। पटना से पहले आतंकियों ने बोध गया में आतंकी विस्फोट को अंजाम दिया। उस घटना की जांच कर रही एनआईए को विस्फोट के साजिशकर्ता की मुकम्मल जानकारी हो चुकी थी, लेकिन उसे दबाया गया। जब मामला खुला और पटना रैली की घटना के बाद बात सुर्खियों में आई तो लगतार एक के बाद एक आतंकी पकडे जा रहे हैं, लेकिन बोध गया विस्फोट के बाद एक भी आतंकवादी नहीं पकडा गया था। यहां तक कि बिहार सरकार ने एनआईए की जांच और गतिविधियों पर लगतार रोडा अटकाने का प्रयास किया।

कुछ लोग बिहार की कानून व्यवस्था में आई गिरावट के लिए पुलिस महानिदेशक अभयानंद की कार्यशैली को जिम्मेबार मानते हैं। अभयानंद पर आरोप है कि वे पुलिस महकमें के लायक नहीं हैं, उन्हें शिक्षक होना चाहिए, लेकिन ऐसी बात नहीं है। बेतिया और बगहा के क्षेत्रों में आज भी उनके द्वारा किये गये कार्य की लोग सराहना करते हैं। लेकिन बिहार सरकार की सबसे बडी त्रासदि है कि वहां संप्रदाय के आधार पर प्रशासन को बांट दिया गया है। हिन्दुओं के लिए अलग कानून है और मुस्लमानों के लिए अलग। जिस समय अफजल अमानुल्ला को गृह सचिव बनाया जा रहा था उस समय बिहार भाजपा के कई नेताओं ने आपत्ति जताई थी। क्योंकि प्रशासनिक कार्यों में कई स्थानों पर अमानुल्ला ने हिन्दू और मुस्लमानों में भेद किया और मुस्लमानों को तरजीह दी। नीतीश कुमार को वे क्यों अच्छे लगे यह आज भी रहस्य बना हुआ है। अमानुल्ला ने बिहार के प्रशासन को साम्प्रदायिक तरीके से विभाजित कर दिया है। बिहार प्रशासन में ऐसे तत्व हैं जो इस्लामी चरमपंथ को सह देने के लिए जाने जाते हैं बावजूद वे मुख्यमंत्री के प्रिय हैं।  

इन तमाम विसंगतियों के बीच जो चित्र पटना रैली विस्फोट के बाद सामने आयी है वह नीतीश कुमार के दलगत ईष्या और मुस्लिम तुष्टिकरण को रेखांकित करता है। आतंकी घटनाएं देश के किसी भी कोने में हो सकती है। बम किसी भी स्थान पर फोडा जा सकता है, लेकिन एक खास पार्टी और प्रशासन के कुछ लोगों के संबंधियों की संलिप्ताता और उसके बाद जांच में रोडा अटकाने की सूनियोजित योजना, फिर प्रशासनिक चूक को धत्ता बताते हुए यह साबित करने का प्रयास करना कि यह तो भारतीय जनता पार्टी की गलती के कारण ही हुई, इसे किसी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है। इसे लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं कहा जा सकता है। इससे यह सबित होता है कि नीतीश और उनका प्रशासन परोक्ष रूप से भाजपा की रैली को असफल करने की योजना में था, जो संभव नहीं हो सका। अब देखिये एक ओर नीतीश यह चाहते थे कि देश के राष्ट्रपति का कार्यक्रम लेकर, फिर सुरक्षा का बहाना बनाकर रैली को होने से रोका जाये। जब इस विवाद में महामहिम नहीं फसे तो आनन फानन में दूसरी योजना पर काम किया गया और रैली को असफल करने की मुकम्मल कोशिश की गयी लेकिन भाजपा के कार्यकत्र्ता और नेताओं ने बडी सूझ-बूझ से काम लिया और रैली का जो संदेश दिया जाना चाहिए था वह पूरे देश में गया।

इससे यह साबित होता है कि नीतीश कुमार चाहे अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन इस रैली विस्फोट ने साबित कर दिया है कि नीतीश एक ईष्यालु प्रवृति के नेता हैं। यही नहीं उन्होंने जो लोकतंत्र का लवादा ओढ रखा था उसे भी इस घटना ने तार तारा कर दिया है। साथ ही नीतीश के समाचवाद असली चेहरा भी लोगों के सामने आ गया है।

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