कांग्रेस की गोहाना रैली का नफा-नुक्शान:गौतम चैधरी

इन दिनों सत्तारूढ दल हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में घमासान मचा है। मुख्यमंत्री चैधरी भुपेन्द्र सिंह हुड्डा और केन्द्रीय मंत्री कुमारी शैलजा का आपसी गतिरोध बढता ही जा रहा है। यही नहीं प्रदेश के अन्य नेता भी चैधरी हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। इस बीच हुड्डा समर्थकों द्वारा गोहाना की रैली को इतिहासिक बताया जा रहा है। निःसंदेह विगत दिनों भाजपा द्वारा आयोजित सोनीपत की रैली और इंडियन नेशनल लोकदल की कुरूक्षेत्र रैली से कांग्रेस की गोहाना रैली बडी थी। इस मामले में गोहाना रैली को इतिहासिक कहा जा सकता है। वहां जाने वाले हर व्यक्ति ने रैली की सराहना की है। रैली का प्रबंधन उत्तम बताया जा रहा है। हरियाणा में बकायदा कांग्रेस की सरकार है। रैली का आयोजन कांग्रेस पबंधन की ओर से किया गया था। प्रचार के लिए सरकार का संपूर्ण अमला-फैदा दासो-दास था, गोया सरकार का पूरा जनसंपर्क विभाग समाचार माध्यमों को साध रहा था। इन तमाम दृष्टिकोणों से इस रैली को इतिहासिक कहा जा सकता है। 

रैली के माध्यम से हरियाणा के कांग्रेसी क्षत्रप चै. भुपेन्द्र सिंह हुड्डा ने जो संदेश प्रदेश की जनता को देना चाहा वह उन्होंने दिया। इस मामले में हुड्डा सफल रहे। गोहाना रैली की घोषणा पर कितना अमल होगा और उसका कितना प्रभाव आने वाले विधानसभा या लोकसभा के चुनाव पर पडेगा, यह बतान आसान नहीं है, लेकिन मंच से सरकारी नौकर, किसान, कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी आदि तमाम लोगों के लिए घोषणाएं की गयी। रैली में खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए भी मुख्यमंत्री हुड्डा ने बडी घोषणा की और उद्योग जगत को यह संदेश देने का प्रयास किया कि हरियाणा निजी कंपनियों के मजदूरों के प्रति भी संवेदनशील है। उन तमाम घोषणाओं के बाद, इधर हुड्डा घोषणाओं की प्रसस्थी पढ कर मंच से नीचे उतरे और उधर राज्य के लगभग दो लाख अर्ध सरकारी मजदूर हडताल पर जाने की घोषणा कर दी। इस मामले में कहां चूक हुई यह मुख्यमंत्री की रणनीति के जानकारों के पल्ले नहीं पड रहा है। जब मुख्यमंत्री मजदूर और कर्मचारियों के हितों में घोषणा कर रहे हैं तो आखिर क्यों सरकार के ही नुमाइंदे सरकार की नीतियों की भत्सना कर रहे हैं? यह प्रश्न बडा गंभीर है और इसका उत्तर भी मिलना कठिन है।

विगत दो दिन पहले सिरसा के एक अधिकारी के हवाले से खबर आयी कि गोहाना रैली में मुख्यमंत्री द्वारा की गयी विभिन्न घोषणाओं को पूरा करने के लिए धन की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गयी है। उधर प्रदेश के लगभग ढाई लाख ठेका कर्मचारी नियमित करने की मांग कर रहे हैं। सरकार उन कर्मचारियों को वित्तीय दुरावस्था का डर दिखाकर नियमित करने से कन्नी काट रही है। ऐसे में कर्मचारियों के बीच यह संदेश जा रहा है कि मुख्यमंत्री की घोषणा अमल से कोशों दूर है। यही कारण है कि लाख घोषणाओं का विश्वास दिलाने के बाद भी प्रदेश के कर्मचारी मुख्यमंत्री पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। 

कहा जा रहा है कि रैली में लगभग 15 लाख लोग हिस्सा लेने गोहाना आए थे। निःसंदेह आए होंगे। इस रैली के माध्यम से चैधरी हुड्डा ने अपनी ताकत दिखाने का प्रयत्न किया। चलो! राजनीति में यह कोई नहीं बात नहीं है। जनतंत्रात्मक राजनीति में रैली शक्ति प्रदर्शन का माध्यम होता है। रैलियों के माध्यम से नेता या दल अपनी ताकत का परिचय समाज को तथा प्रतिपक्षियों का कराता रहा है। हुड्डा साहब ने भी अपनी शक्ति को प्रदशित करने की भरपूर कोशिश की। रैली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रतिनिधि डाॅ. शकील अहमद खान आए थे। हालांकि भाषण में तो उन्होंने मुख्यमंत्री हुड्डा का बडा गुणगान किया लेकिन जो वृत्ता उन्होंने सोनिया जी को थमाया वह हुड्डा साहेब के पक्ष में नहीं बताया जा रहा है। इस बात का खुलासा तब हुआ जब गोहाना रैली के तीसरे ही दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के हवाले से एक खबर छपी कि हुड्डा साहब को सबको साथ लेकर चलने की हिदायत दी गयी है। यही नहीं उधर सूत्रों के हवाले से भी एक खबर आयी, जिसका कुल लब्बोलुआव था कि कांग्रेस चैधरी भुपेन्द्र हुड्डा के विकल्प की तलाश में जुट गयी है।

रैली में प्रदेश के लगभग तमाम विधायक आए हुए थे। कुछ नहीं आए उसका राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व सीमित है, लेकिन रैली में प्रदेश की प्रभावशाली नेत्री, केन्द्रीय मंत्री तथा अम्बाला की सांसद कुमारी शैलजा उपस्थित नहीं हुई। यही नहीं रैली से एक दिन पहले अपने संसदीय क्षेत्र अम्बाला में एक पत्रकार वार्ता कर कु. शैलजा ने कहा कि मुझे गोहाना रैली की सूचना नहीं दी गयी है। इसे क्या कहा जाना चाहिए? बाद दिनों में भी शैलजा मुख्यमंत्री पर प्रहार करने का कोई मौका अपने हाथ से जाने नहीं देती। मुख्यमंत्री हुड्डा के खिलाफ एक सांसद पहले बगावत कर पार्टी से बाहर जा चुके हैं। हालाकि शैलजा के पार्टी छोडने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं लेकिन जो स्थिति बन रही है वह किसी मायने में चैधरी हुड्डा के हित में तो नहीं ही दिख रहा है। इधर हरियाणा में बोटों के विभाजन को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी बडी सिद्दत से दलों के साथ तालमेल बिठा रही है। भाजपा की रणनीति काम कर गयी तो हुड्डा के खिलाफ मतों का ध्रुविकरण तय है। ऐसी स्थिति में हुड्डा का लगातार मुख्यमंत्री बने रहना मुमकिन नहीं होगा।

कुल मिलाकर देखें तो मुख्यमंत्री हुड्डा की गोहाना रैली दो बातों पर केन्द्रित थी। एक तो अपने मतों का आधार मजबूत करना और दूसरा प्रतिपक्षियों के साथ ही साथ दिल्ली के आलाकमान को संदेश देना कि चैधरी भुपेन्द्र सिंह हुड्डा हरियाणा की राजनीति के लिए अपरिहार्य हैं। माना की हुड्डा की रैली इतिहासिक रही होगी लेकिन इस रैली का प्रतिफल फिलहाल तो मुख्यमंत्री के हित में नहीं दिख रहा है। रैली के बाद जहां एक ओर प्रदेश कांग्रेस में अंतरकलह बढ है वही दूसरी ओर प्रदेश की जनता का विश्वास भी सरकार के प्रति डगमगा रहा है। इसलिए रैली को इतिहासिक तो कहा जा सकता है लेकिन इसे फलदायी तो कतई नहीं कहा जा सकता। इसमें हुड्डा कहां चूके यह तो उनके सिपहसालार बताएंगे लेकिन राजनीतिक पंडितों तो यही मानना है कि हुड्डा राजनीति के शतरंज पर कही न कही बेहद कमजोर पर रहे हैं। इन तमाम मिमांशाओं संकेत साफा है कि आने वाले समय में हुड्डा आंतरिक और वाह्य आक्रमणों के जद में होंगे।

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