भारतीय बाजार पर चीनी का आक्रामक आक्रमण-गौतम चैधरी

चीन का बाजार भारत के गिरेवान तक पहुंच गया है। चीन के आक्रामक अंदाज ने न केवल भारत को चारो ओर से घेर रहा है, अपितु देश के उद्योग को भी नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने लगा है। इस काम में चीन का साथ वही लोग दे रहे हैं, जो अपने आप को प्रगतिशील संप्रदाय का मानते रहे हैं। वे अभिजात्य हैं और सत्ता के गलियारों तक उनकी धमक है। गणनायक गणेश की मूर्ति हो या महावली हनुमान की तस्वीर, भगवान भोले नाथ का शिवलिंग हो या नटवर नागर मोहिनी मूरत भगवान कृष्ण की छवि, हर पर मेड इन चाइना लिखा होता है। चीन केवल छोटे-छोटे वस्तुओं का बाजार नहीं जोड रह, उसकी नजर अब भारत के आधारभूत उद्योग पर है। चीन श्रीलंका को हथियार दे रहा है। चीन मालदीव से भारत की कंपनियों को खदेरने में अहम भूमिका निभा रहा है। चीन अफगानिस्तान के आधारभूत संरचना में हाथ बटा रही भारत की कंपनियों को भगाने में पाकिस्तान की मदद कर रहा है। चीन नेपाल के साथ मिलकर हिमालय के पानी पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहा है और भारत के अभिजात्य जो कल तक ब्रितान, सोवित संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका की चाकरी में लगे थे आज चीनी पूंजी को बढावा देने में अहम भूमिका निभाने की पृष्ठभूमि बनाने लगे हैं।

चीन के साथ बजार बढाने के चक्कर में भारत के कूटनीतिज्ञों ने चीन के लिए बडा बाजार खोल दिया है। चीन हमारे सिल्क उद्योग को खत्म कर दिया। चीन हमारे कालीन उद्योग को बरबाद कर दिया। चीन हमारे लकडी उद्योग पर प्रहार कर रहा है। चीन यहीं नहीं रूकेगा वह बडे सूनियोजित तरीके से भारत के सीरेमिक उद्योग पर भी दबाव बनाने गला है। इसके बाद चीन भारत के सीमेंट उद्योग पर आक्रमण करेगा। चीन की योजना भारत के अन्न बाजार पर भी है। आॅउट-टेल खेलने वाली कंपनियों को चीन सस्ते में अनाज उपलब्ध कराएगा और हमारे किसान उपने उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में केवल जद्दोजहद करते रह जाएंगे। चीन की इस आक्रामक बाजार हथियाओ रणनीति को समझने की जरूरत है।

विगत दिनों हरियाणा सरकार के स्वामित्व वाले ताप विद्युत परियोजना का टरबाइन खराब हो गया। सस्ता होने के करण हरियाणा सरकार ने अपने कई परियोजनाओं में चीन के मशीन का उपयोग कर रखी है। समझौते के अनुसार यंत्र में आयी खराबी को चीन की कंपनी ठीक करती, लेकिन जब हरियाणा सरकार के नुमाईदों ने इस मामले में चीनी कंपनी से बात की तो वह ना कर दिया। कहा कि ठीक कर देने की बात जायज है, लेकिन मशीन को पहले चीन भेजा जाये। चीन बाजार पर इसी प्रकार का आक्रमण कर रहा है। विगत दिनों तीन संयोग एक ही साथ देखने को मिला। पहला केन्द्र सरकार ने सीरेमिक उत्पाद पर चीन के लिए एनटी डंपिंग ड्यूटी में 10 प्रतिशत की कमी कर दी। उधर प्रदूषण को लेकर गुजरात उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की गयी। लगे हाथ न्यायालय ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए गुजरात सराकर को आदेश दे दिया कि अति प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण मुक्ति की व्यवस्था की जाये। गुजरात प्रशासन ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अलंग, अंकलेश्वर, सूरत, दहेज, गांधीधाम आदि को छोड केवल मोडवी के सीरेमिक उद्योगों में से 123 उद्योगों को नोटिस भेज दिया।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यह कह रहा है कि सीरेमिक उद्योग अब कोयला से नहीं चलने दिया जाएगा। उसके लिए गैस या फिर बिजली का उपयोग किया जाये। गुजरात सरकार के स्वामित्व वाली गैस कंपनी एक साल के अंदर गैर की कीमत में दो गुना बढोतरी की है। गुजरात सरकार ओएनजीसी के सस्ते गैस को सीरेमिक उद्योग तक पहुंचाने में लगतार बाधा पहुंचाती रही है। ऐसी परिस्थिति में मोडवी का सीरेमिक कारखाना बंदी के कगार पर पहुंच गया है। दूसरी ओर चीनी सीरेमिक उत्पाद के उपर से एन्टी डंपिंग ड्यूटी कम हो जाने के कारण चीन का सीरेमिक उत्पाद सस्ता होने लगा है। हालांकि चीनी उत्पाद घटिया होता है, परंतु व्यापारी बडे पैमाने पर चीनी टायल्स बेच, मुनाफा कमाने के चक्कर में देश की कंपनियों को कमजोर कर रहे हैं। भारत के महान कूटनीतिक और अर्थशास्त्री आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य की एक इतिहासिक उक्ति है - ‘‘कई संयोग एक ही साथ उत्पन्न हो तो उसमें कही न कही षड्यंत्र छुपा होने का डर होता है।‘‘

मोडवी के सीरेमिक उद्योग मामले में चाणक्य के संदेह को बल मिल रहा है। यहां भी कई संयोग एक ही साथ सामने आ रहे हैं। भारत के 80 प्रतिशत बाजार पर मोडवी के सीरेमिक उत्पाद का कब्जा है। यहां का सीरेमिक उत्पाद प्रति वर्ष 12000 करोड रूपये का व्यापार करता है। मोडवी के सीरेमिक उद्योग से सरकार को प्रति वर्ष 125 करोड रूपये की आय होती है। कुल दो लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से यहां काम कर रहे हैं। यही नहीं चार लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। सबसे बडी बात तो यह है कि पश्चिम एशिया और मध्य पूरब के देशों में मोडवी के उत्तम टाइल्सों की जबरदस्त मांग है। चीन न केवल भारत के बाजार पर अपना प्रभुत्व चाहता है अपितु माडवी के टाइल्स वाले बाजार पर भी चीन की नजर है। ऐसे में इस उद्योग को संरक्षण नहीं मिला तो एक बार फिर से भारत चीन के साथ बाजार युद्ध में हार जाएगा। इसलिए केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों को एक दूसरे पर आरोप लगाने के बजाय मोडवी को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

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