समझैता एक्सप्रेश विस्फोट मामला, गंभीर नहीं दिख रहा जांच अभिकरण-गौतम चैधरी
समझौता एक्सप्रेश मामले में 19 फरवरी, सन् 2007 को रेलवे सुरक्षा बल के पुलिस उप-निरीक्षक रंजीत सिंह की सूचना के आधार पर एक प्राथमीकी दर्ज की गयी थी। उस प्राथमीकी के आधार पर पाकिस्तान के लाहौर निवासी अजमत अली को पुलिस अभिरक्षण में लिया गया। अजमत अली को समझौता एक्सपे्रश से सफर कर रहे यात्री पति-पत्नी सौकत अली और रूखशाना के द्वारा स्केच के आधार पर हिरासत में लिया गया था। पुलिस ने बताया कि अजमत अली भारत के कई स्थानों पर रेकी कर रहा था। वह अवैध तरीके से भारत के विभिन्न नगर और प्रांतों का भ्रमण कर रहा था। इसके बाद इंदौर, मध्य प्रदेश निवासी हुज्जाफ को पुलिस ने आठ दिनों के लिए अभिरक्षण में लिया। उसी दौरान पूरन सिंह ठाकुर भी पुलिस गिरफ्त में आया। इसके बाद पुलिस, जैनुद्दीन नामक व्यक्ति को पकडी। जैनुद्दीन का नार्को किया गया। इसके बाद पुलिस ने अब्दुल रज्जाक को पकडी। पुलिस ने ही रज्जाक को सिमी सरगना सफदर नागोरी का नजदीकी बताया। इन तमाम जानकारी और तथ्यों की दिशा एक थी जिसका संकेत स्पष्ट था कि समझौता एक्सप्रेश में बम विस्फोट के पीछे मुस्लिम चरमपंथियों का हाथ था।
लेकिन 26 जुलाई सन् 2010 के बाद समझौता एक्सप्रेश जांच की धारा बदल गयी। देखते ही देखते समाचार माध्यमों में खबरें आने लगी कि समझौता एक्सप्रेश विस्फोट का असली सरगना गुजरात के डांग में वनवासियों के बीच सेवा का काम करने वाले स्वामी असीमानंद हैं। इसका आधार क्या है, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। इस खबर के पीछे का कारण भी रहस्य के धूल में ढका हुआ है। हालांकि बाद में राष्ट्रीय जांच अभिकरण, यानि एनआईए. ने विशेष न्यायालय, पचकूला को अपने अधिकारी विशाल गर्ग के हवाले से 20 जून, सन् 2011 को 24 पृष्टों का एक आरोप-पत्र सौंपा। इसे बिडम्वणा ही कहा जाना चाहिए कि ढाई साल बीत जाने के बाद भी असीमानंद पर आरोप तय नहीं किया जा सका है। एनआईए के द्वारा दाखित अरोप-पत्र में इस बात की कही चर्चा नहीं की गयी है कि समझौता एक्सप्रेश विस्फोट में जो पुराने आरोपी थे उनको क्यों नहीं जांच का हिस्सा बनाया गया है। एनआईए के आरोप-पत्र में केवल इतना कहा गया है कि मामला हिन्दू आतंकवादियों से संबद्ध हैं। आरोप-पत्र में मामले को मालेगांव, मक्का मस्जिद एवं अजमेर शरीफ से जोडा गया है। स्वामी को सीधे तौर पर सरगना ठहराया गया है। स्वामी के बारे में बतया गया है कि स्वामी असीमानंद ने बलसाड, गुजरात के एक व्यक्ति के माध्यम से 25 हजार रूपये समझौता एक्सप्रेस के आरोपियों तक पहुंचाया था। स्वामी पर अरोप में एनआईए कहती है कि स्वामी को समझौता एक्सप्रेश के आरोपियों द्वारा आतंकी घटनाओं की सूचना दी जाती थी। इसलिए स्वामी अरोपी हैं। आरोप पत्र में स्वामी द्वारा समझौता विस्फोट की स्वीकार्यता का भी जिक्र किया गया है। जिस व्यक्ति को एनआईए ने 25 हजार रूपये लेने की बात बात बता रही है उस व्यक्ति की गवाही संदिग्ध है।
एनआईए के आरोप-पत्र को पढने से साफ जाहिर होता है कि यह एक कपोल कल्पना है। पुराने तथ्यों को नकार, कल्पना के आधार पर स्वामी असीमानंद को गिरफ्तार किया गया। आनन-फानन में वारंट जारी कर दिया गया। एनआईए को खबर ब्रीफ करने का अधिकार नहीं है, बावजूद मामला लीक किया गया और एक पत्रिका के माध्यम से असीमानंद को अपराधी घोषित करने की मुहीम चलाई गयी। मामले की जांच एनआईए कर रही है और असीमानंद की कस्टडी केन्द्रीय जांच ब्यूरो को दी गयी। मामला पानीपत, हरियाणा का है, लेकिन असीमानंद को हैदराबाद ले जाया गया। असीमानंद के समर्थोकों का आरोप है कि आखिर क्यों असीमानंद को हैदराबाद के अदालत में प्रस्तुत किया गया? अदालत तो हरिद्वारा में भी था। यदि हरिद्वार में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था तो दिल्ली या फिर पानीपत में उन्हें क्यों नहीं दाखिल किया गया? असीमानंद 18 दिनों तक पुलिस अभिरक्षण में रहे। असीमानंद को खतरनाक अपराधियों के साथ रखा गया। उनके साथ अमानवीय व्यवकहार की गयी और कई प्रकार की शारीरिक यातनाएं दी गयी। वह भी ऐसे जांच के नाम पर जिसकी सच्चाई पर आज भी रहस्य के पर्दे पडे हैं तथा उसकी सच्चाई पर अभी माननीय न्यायालय को मुहर लगाना है।
एनआईए के नवीन मुहीम के बाद केन्द्र सरकार ने समाचार माध्यमों को बता दी कि अब पुराने और मुस्लिम आरोपियों के खिलाफ सरकार न्यायालय में विरोध नहीं करेगी। केन्द्र सरकार के इस बयान के बाद मामले के पुराने तमाम आरोपी छूट गये। लेकिन उन आरोपियों पर न्यायालय की टिप्पणी गंभीर है। न्यायालय ने कहा, माना कि नये अरोपियों ने समझौता एक्सप्रेश विस्फोट मामले में अपराध स्वीकार लिया है, लेकिन इससे पुराने आरोपियों को आरोप मुक्त नहीं किया जा सकता है। फिर मामला अभी अंडर-ट्रीयल है।
इन दिनों एनआईए मामले को लटकाने की पूरी कोशिश में है। मामले से जुडे आरोपी कमल चैहान के अधिवक्ता ने एनआईए विशेष न्यायालय में आवेदन देकर मांग किया है कि कमल पर आरोप सिद्ध करने के लिए प्रतिदिन सुनवाई की जाए, लेकिन एनआईए इस मामले में गंभीरता नहीं दिखा रही है। कमल और असीमानंद के अधिवक्ताओं का आरोप है कि एनआईए न्यायालय में प्रत्येक तारीख पर कोई न कोई नया मामला उठा लाती है। इन दिनों एनआईए अरोपियों के हस्त-चित्र पर पडी है। फिंगर-पृंट का मिलान समझौता एक्सप्रेश विस्फोट में मिले समानें पर पडे फिंगर पृंटों से कराने की बात कही जा रही है। ढाई साल बीत जाने के बाद एनआईए को इस बात की याद आ रही है। मामले पर नजर रखने वाले अधिवक्ता बलदेवराज महाजन का कहना है कि अभी तक इसकी याद एनआईए को क्यों नहीं आयी, यह भी एक रहस्य ही है।
जांच को बिना मतलब लम्बा बनाया जा रहा है। इसके पीछे का कराण क्या है यह तो जांच अभिकरण ही बाता सकता है, लेकिन जांच अभिकरण के गुप्त मन्तव्य का भाव अब स्पष्ट होने लगा है। पहला, एनआईए द्वारा इस जांच के लिए खर्च पर एक आरटीआई में जो जानकारी दी गयी है वह चैकाने वाली है। दूसरा, जांच प्रक्रिया को लम्बा खिच जाने से आरोपी टूट जाएगा और जो अपराध उसने किया ही नहीं, वह भी स्वीकार कर लेगा।
अभी असीमानंद अपने उपर लगे अरोपों के गवाहों की गवाही का अध्यन कर रहे होंगे। उन्होंने न्यायालय से मांग की थी कि जिन गवाहों के गवाही के आधार पर एनआईए उन्हें अपराधी मान रही है, उन गवाहों के बयानों की लिखित प्रति उन्हें उपलब्ध कराई जाये। प्रथम चनण में एनआईए ने गवाहों के पहचान की गोपनीयता का बहाना बनाया, लेकिन जब न्यायालय ने कानून का डंडा दिखाया तो, एनआईए ने आधी अधूरी गवाहों की गवाही आरोपी को उपलब्ध करा दिया। जो प्रति स्वामी को उपलब्ध कराया गया है, उसपर स्वामी के अधिवक्ता पदमकांत द्वीवेदी की घोर आपत्ति है। उन्होंने एनआईए पर तथ्यों से छेड-छाड का अरोप लगाया है। पूरी और मुकम्मल प्रति उपलब्ध कराने पर एनआईए विशष न्यायालय, पंचकूला ने ना कर दिया। अब मामला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के संयुक्त पीठ के पास है। इस बीच मामले पर टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा लेकिन जिन गवाहों की गवाही के आधार पर आरोपी पर अपराध सिद्ध किया जा रहा है, उन गवाहों के बयान की जानकारी तो आरोपी का कानूनी अधिकार है। इस आधार पर असीमानंद को गवाहों की गवाही की पूरी पूरी प्रति मिलनी चाहिए। इस मामले के अधिवक्ता द्वीवेदी का साफ साफ कहना है कि भले गवाहों की पहचान मिटा दी जाये लेकिन गवाहों की गवाही तो आरोपी को मुकम्मल मिलनी ही चाहिए।
असीमानंद के जमानत पर अगली सुनवाई 23 दिसंबर को होने वाली है। इसमें गवाहों की गवाही प्रस्तुत की जाएगी। वह गवाही भी संभवतः रोचक होगी। गवाही के बाद जिरह और फिर न्यायालय तय करेगा कि एनआईए की जांच कितनी तथ्यपरक है और असीमानंद अपराधी हैं या फिर निरपराध, लेकिन फिलवक्त जांच अभिकरण के रूख से यही लग रहा है कि वह मामले को लेकर न तो गंभीर है और न ही संवेदनशील।
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