रूस पाकिस्तान सैन्य समझौता-एशिया में एक नए गठजोड़ के संकेत


 
संजीव पांडेय 
भारतीय के विदेश नीति निर्धारकों के लिए एक गंभीर सूचना है। रूस ने पाकिस्तान से सैनिक सहयोग करने का फैसला लिया है। 20 नवंबर 2014 को रूसी प्रतिरक्षा मंत्री ने पाकिस्तान दौरे के दौरान पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के साथ समझौता किया। यह किसी रूसी रक्षा मंत्री का पाकिस्तानी धरती पर 45 साल के बाद दौरा था।  1969 के बाद किसी रूसी प्रतिरक्षा मंत्री ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया था। पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर का मतलब कई है।  रूस के इस कदम के बाद कई सवाल उठे । रूस पिछले दो सालों से यह फैसला लेना चाहता था, लेकिन बीच में मामला रूक जाता था। इसके पीछे भारत था। लेकिन अब रूस के इस फैसले ने यह सवाल उठा दिया है कि क्या रूस अपने परंपरागत दोस्त भारत के बजाए एशियाई कुटनीति में पाकिस्तान को सहयोग करेगा ? क्योंकि रूस ने हाल ही में चीन से बहुत बड़ा व्यापारिक समझौता किया है। रूस ने पाकिस्तान से रक्षा सहयोग पर फैसला तब किया है जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस हट रही है। वहीं भारत की दोस्ती अमेरिका से लगातार बढ़ रही है। रूस की यह नई रणनीति का सीधा नुकसान भारत को भी होगा, क्योंकि रूस आजादी के बाद से भारत का एक विश्वनीय मित्र रहा है।
रूस की यह बदलती विदेश नीति भारत के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि तमाम विपरित परिस्थितियों के बीच रूस उतना कमजोर नहीं हुआ जितना पश्चिमी देशों का आकलन था। यूक्रेन में रूस ने वही किया जो उसकी मर्जी आयी। इसका कारण रूस का भूगोल है, जिसका फायदा उठा रूस पश्चिमी देशों की सामान्य आपूर्ति लाइन भी काट सकता है और पश्चिमी विमान कंपनियों की उड़ान भी अपने हवाई क्षेत्र से रोक सकता है। वहीं रूस का बड़ा हाइड्रोकार्बन रिजर्व रूस को अभी भी मजबूत बनाए हुए है। यही कारण था कि नाराज पुतिन आस्ट्रेलिया में जी-20 की बैठक बीच में ही छोड़कर चले गए। जी-20 बैठक की आधी चमक तब फीकी पड़ गई जब रूसी  राष्ट्रपति पुतिन सम्मेलन बीच में ही छोड़ गए। यूक्रेन को लेकर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन की घेरेबंदी ने पुतिन को नाराज कर दिया। हालांकि इस घेरेबंदी के बावजूद पुतिन झुकने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने सम्मेलन को बीच में ही छोड़ संकेत दिए कि रूसी अर्थव्यव्यस्था पश्चिमी प्रतिबंधों को झेलने के लिए तैयार है। पुतिन का मानना है कि रूस को अकेले करने की रणनीति का अंतिम नुकसान अमेरिका, ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीए देशों को होगा। क्योंकि रुस ने अपने नुकसान की भरपाई के लिए विकल्प तलाश लिए है। पुतिन अब अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई मुल्कों से दो-दो हाथ करने को तैयार है। 
 
जी-20 सम्मेलन में कालाधन और दुनिया की अर्थव्यवस्था को गति देने को लेकर खूब बातचीत हुई। आर्थिक महाशक्तियों ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए और पूंजी बाजार में लायी जाएगी। रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा किए जाएंगे। लेकिन रूसी राष्ट्रपति के बॉयकॉट ने इन घोषणाओं  सफलता पर ही सवाल खड़ा किया है। क्योंकि रूस अभी भी दुनिया का एक बड़ा अर्थव्यवस्था है, वहीं यूरोप की अर्थव्यवस्था समय-समय पर लड़खड़ा रही है। रूप से ही लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध का सीधा असर यूरोप की इक़नॉमी पर देखा गया है। अगर रूस यूरोप को गैस आपूर्ति बंद कर दे तो कई यूरोपीए देशों का जीवन अस्त व्यस्त हो जाए। 
 
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और कनाडा के प्रधानमंत्री का रूसी राष्ट्रपति के साथ व्यवहार में झुंझलाहट थी। इस झुंझलाहट के काऱण है। क्योंकि पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंध का असर फिलहाल रूस पर नहीं दिखा है। वहीं रूस ने प्रतिबंध के असर को रोकने के लिए विकल्प भी ढूंढने शुरू कर दिए है। रूस के पास हाइड्रोकार्बन का भारी रिजर्व है। इसी महीनें रूस ने चीन से 400 बिलियन डालर के गैस निर्यात का सौदा कर लिया। समझौते के अनुसार रूस प्रतिवर्ष 36 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस प्रति वर्ष चीन को निर्यात करेगा। हालांकि यूरोप को रूस के निर्यात किए जाने वाले गैस से फिलहाल ये काफी कम है, लेकिन 2020 तक यह निर्यात दोगुना कर दिया जाएगा। रूस जानता है कि एशियाई बाजार में हाइड्रोकार्बन की भारी मांग है और कई एशियाई देश उर्जा आयात के भूखे है। वो इस मामले में अमेरिकी दबाव नहीं मानेंगे। रूसी हाइड्रोकार्बन का ग्राहक दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान समेत पूर्वी एशिया के भी कई मुल्क हो सकते है। 
 
हाल ही में चीन में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग का सम्मेलन संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में रूस और चीन और नजदीक आए। अमेरिका इससे खासा परेशान हुआ है। क्योंकि चीन जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ सकता है। एशिया प्रशांत आर्थिक सम्मेलन में चीन ने अपनी ताकत दिखायी। इस सम्मेलन की आड़ में कई देशों के साथ चीन ने दिपक्षीए समझौते किए। इससे अमेरिका काफी परेशान हुआ। एशिया के मध्य वर्ग को चीन पश्चिम के हाथ में जाने से रोक रहा है। क्योंकि लैटिन अमेरिका के मुकाबले एशिया में मध्य वर्ग पिछले बीस सालों में तीन गुना ज्यादा हो गया है। अमेरिका को डर है कि इस माहौल में रूस और चीन की दोस्ती चीन की महत्वकांक्षा और बढ़ाएगी। क्योंकि चीन ने पश्चिमी देशों के इकनॉमिक आर्डर को चुनौती देते हुए आईएमएफ और वल्रर्ड बैंक के समानांतर व्यवस्था विकसित करने की कोशिश कर रहा है। ब्रिक्स देशों का बैंक बनाया जाना इसका एक उदाहरण है। इस बीच रूस चीन से नजदीकी और बढ़ाने लगा है। आस्ट्रेलिया में ब्रिक्स के सदस्य रूस, चीन, ब्राजील, भारत और साउथ अफ्रीका की बैठक से पश्चिमी देशों का माथा ठनक गया। क्योंकि ब्रिक्स देशों की अर्थव्यस्था पूरे यूरोप और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बराबर है। पुतिन समय-समय पर पश्चिम को चिढ़ा रहे है। उन्होंने ईरान में रूसी सहयोग से दो और सिविल न्यूकलियर रिएक्टर लगाने को हरी झंडी दे दी है। पुतिन समझते है कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का नुकसान यूरोप को भी है। जर्मनी का 2014 में 5 अरब डालर का निर्यात प्रभावित हुआ है। जर्मनी रूस को कार, मशीनरी और केमिकल का निर्यात करता है। रूस पर लगाए गए प्रतिबंध से जर्मनी में 25000 लोग बेरोजगार हो गए है। 
 
अमेरिका और यूरोपीए यूनियन ने एक ऱणनीति के तहत रूस को पश्चिमी पूंजी और तकनीकी बाजार में पहुंचने पर रोक लगायी है। क्योंकि इससे रूसी बैंक कमजोर होंगे वहीं तकनीक ट्रांसफर के आभाव में रूस के हाइड्रोकार्बन और पेट्रोलियम सेक्टर प्रभावित होगा। लेकिन इन प्रतिबंधों से वे पश्चिमी पेट्रोलियम कंपनियां परेशान है, जो रूस में निवेश कर चुकी है या भविष्य में निवेश की इच्छा रखती है। बीपी, शेल, एक्शन मोबाइल आदि पश्चिमी कंपनियां रूसी कंपनियों को पेट्रोलियम और गैस सेक्टर में तकनीकी सहयोग करती है। वहीं कई यूरोपीए देशों को डर है कि नाराज पुतिन ठंड के मौसम में गैस आपूर्ति न रोक दे। इसमें बाल्टिक देश और फीनलैंड शामिल है। पोलैंड जैसे देश अपनी जरूरत के 80 प्रतिशत गैस रूस से मंगवाते है। कुछ बाल्टिक देश और फीनलैंड तो गैस की अपनी पूरी जरूरत रूस से ही पूरी करते है।

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