स्वयंभू कबीरपंथी संत बाबा रामपाल का आश्रम और उसका रहस्य

गौतम चैधरी
हत्या के मामले में गिरफ्तार सतलोक आश्रम के स्वयंभू कबीरपंथी संत बाबा रामपाल को जेल भेज दिया गया। उनके उपर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। गुरूवार को माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में उन्हें प्रस्तुत किया गया और न्यायालय ने बाबा को आगामी 28 नवम्बर तक के लिए न्यायिक अभिरक्षण में भेज दिया। बाबा पर लगाये गये आरोप यदि साबित हो गया तो बाबा को फांसी तक की सजा हो सकती है, यही नहीं, संभव है कि बाबा को अपनी संपत्ति भी गंवानी पड़े।

ऐसे बाबा बनते कैसे हैं और वह करते क्या हैं, उसपर बडे पडताल की गुंजाइस है। हम उसी पडताल को लेकर संजीदगी से प्रस्तुत हो रहे हैं। हालांकि मामला धर्म और आस्था दोनों से जुडा हुआ है, परंतु आस्था के नाम पर दुकानदारी और व्यापार, फिर उस व्यापार के माध्यम से अपराध को बढावा देने की प्रवृति, जो आज समाज में बढी है, उसपर गंभीरता से विचार होना चाहिए। इस पडताल में हम उन्हीं बिन्दुओं पर दृष्टिनिक्षेप करने वाले हैं।

संत रामपाल मूलतः हरियाणा स्थित सोनीपत जिले के गोहाना तहसील, गांव धनाना के रहने वाले हैं। उनका जन्म सन् 1951 में बताया जाता है। बाबा को जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने अभियंत्रण में डिप्लोमा करने के बाद सिंचाई विभाग में करनीय अभियंता के पद पर नौकरी की। रामपाल के आश्रम की ओर से चलाई जाने वाली वेबसाइट पर उन्हें जगत गुरु बताया गया है। वेबसाइट के मुताबिक, संत रामपाल ने बरसों तक कृष्ण और हनुमान जी की पूजा की, व्रत रखे लेकिन उन्हें ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। वेबसाइट बताता है कि 107 वर्ष के कबीरपंथी संत स्वामी रामदेवानंद जी ने रामपाल को ज्ञान देते हुए हिंदू देवी-देवताओं की भक्ति पर सवाल उठाए। वेबसाइट में हिंदुओं के आराध्य देवों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। वेबसाइट के मुताबिक, शिष्यों को ज्ञान देने की व्यस्तता के चलते संत रामपाल ने 18 साल सरकारी नौकरी करने के बाद उसे छोड़ दिया और तब से कबीरपंथ के प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं। संत रामपाल सनातन धर्म से जुड़ी मान्यताओं पर सवाल खड़े करते रहे हैं। कबीरपंथ मानवता में यकीन रखता है। वह कथित धार्मिक कर्मकांडों, कुरीतियों और अंधविश्वास पर यकीन नहीं करता। कबीरपंथ कबीर के नाम पर स्थापित मध्यकालीन भारतीय संप्रदाय है। कबीरपंथी साहित्य से पता चलता है कि संत कबीर ने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए अपने चार प्रमुख शिष्यों, चत्रभुज, बंके जी, सहते जी और धर्मदास को भेजा था। प्रथम तीन शिष्यों के संबंध में कोई विवरण प्राप्त नहीं है। धर्मदास के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने कबीरपंथ की धर्मदासी (छत्तीसगढ़ी) शाखा की स्थापना की थी।

कबीरपंथ की विभिन्न संस्थाओं के विभाजन के संबंध में दो मत मिलते हैं। एक मत के अनुसार, कबीरपंथ की दो प्रमुख शाखाएं बताई गई हैं। प्रथम शाखा का केंद्र वाराणसी का कबीरचैरा है। इसकी एक उपशाखा उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर जिला स्थित मगहर में है। दूसरा केंद्र छत्तीसगढ़ में है, जिसकी स्थापना धर्मदास ने की थी। इसकी भी अनेक शाखाएं-उपशाखाएं बताई गई हैं। इसके अलावा भी कबीरपंथ की कई शाखाएं हैं। बाबा रामपाल के बारे में बताया जाता है कि वे कबीरदास के शिष्य धर्मदास द्वारा चलाये गये पंथ से संबद्ध हैं। बाबा रामपाल ने हरियाणा में तीन सतलोक आश्रम बनवाए हैं। पहला आश्रम 1999 में रोहतक के करौंथा में बनाया गया। दूसरा आश्रम हिसार जिला स्थित बरवाला में 2001 में तीन एकड़ में बनवाया गया। इसी इलाके में 2008 में 12 एकड़ में एक और आश्रम बनाया गया। इसी 12 एकड़ के आश्रम में बाबा रामपाल समर्थकों के साथ रहते रहे हैं।

बाबा का विचार कबीरपंथी होने के कारण आर्यसमाजियों के साथ उनका जबरदस्त विवाद हुआ। यह विवाद इतना बढ गया कि 14 मई, 2013 को बाबा रामपाल को समर्थकों के साथ करौंथा का सतलोक आश्रम छोड़ना पड़ा। तब यह आश्रम प्रशासन के कब्जे में चला गया। इसके बाद बाबा रामपाल बरवाला में बने सतलोक आश्रम में चले गए। बारह जुलाई, 2006 को हरियाणा के रोहतक के करौंथा में बाबा रामपाल द्वारा संचालित सतलोक आश्रम के बाहर जमा भीड़ पर हुई फायरिंग में झज्जर के एक युवक की मौत हो गई थी। मृतक के भाई का कहना है कि गोली आश्रम की ओर से चली। इस मामले में बाबा रामपाल और उनके 37 समर्थकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। करौंथा स्थित सतलोक आश्रम का स्थानीय ग्रामीण विरोध कर रहे थे। इसी मुद्दे पर 12 मई, 2013 को करौथा में पुलिस व ग्रामीणों के बीच हिंसक झड़प में तीन लोगों की मौत हो गई। इस मामले में 14 मई, 2013 को पुलिस ने आश्रम खाली कराया।

संत रामपाल बरवाला स्थित आश्रम में चले गए। करौंथा आश्रम को प्रशासन ने कब्जे में ले लिया। इन्हीं मामलों में बाबा रामपाल और उनके अनुयायियों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। रामपाल की पेशी से छूट खत्म होने के बाद हिसार कोर्ट में 14 मई, 2014 को उनकी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी हुई। सुनवाई के दिन समर्थकों ने न्यायालय परिसर में घुसकर बवाल काटा। वकीलों से हाथापाई की, जजों के खिलाफ नारेबाजी भी की। उच्च न्यायालय ने खुद संज्ञान लिया और बाबा पेश होने का आदेश दिया गया। कई सुनवाई पर बाबा पेश नहीं हुए तो अदालत ने रामपाल और उनके अनुयायी व सेवा समिति के अध्यक्ष रामकुमार ढाका के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया। ढाका पेश हो चुके हैं, उन्हें जमानत भी मिल गई है।

स्वयंभू कबीरपंथी संत रामपाल का आश्रम आयाशी आड्डा था। पुलिस और जांच अधिकारियों का दावा है कि आश्रम में बाबा और उसके समर्थक क्षद्म कैमरों की मदद से महिलाओं पर नजर रखते थे। बेहद चैकाने वाली खबर यह है कि बाबा के आश्रम में बने महिलाओं के शौचालय से खुफिया कैमरे बरामद किये गये हैं। यही नहीं नशीली दवाए एवं कंडोम भी आश्रम से मिला है। आश्रम से बेहोशी की हालत में पहुंचाने वाली गैस, अश्लील साहित्य समेत काफी आपत्तिजनक सामग्री मिलने की बात बताई जा रही है। सूत्र बताते हैं कि आश्रम में महिलाओं पर कैमरे से नजर रखी जाती थी। आश्रम के मुख्य द्वार के साथ बने महिला शौचालय के बाहर लगे कैमरे का मुंह भी अंदर की तरफ किया गया था। शौचालय में पुलिस को कंडोम भी मिले हैं। आश्रम के अंदर नाइट्रोजन गैस की बदबू आ रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इसे खतरनाक बताते हुए नशीली गैस बता रहे हैं। विगत बुधवार को आश्रम से बाहर आने पर महिलाओं ने भी चैंकाने वाले कई खुलासे किए। उनके अनुसार, निजी कमांडो उन्हें बंधक बनाकर दुराचार तक करते थे। विरोध करने पर कई दिनों तक पहनने को कपड़े तक नहीं दिया था। ऐसी जगह रखते थे कि किसी तक उनकी आवाज नहीं पहुंच सकती थी। पुलिस ने भी मामले की पुष्टि की है। उनके अनुसार, महिलाएं यहां दवाई लेने भी आती थीं, लेकिन उनके साथ दुराचार किया जाता था। हरियाणा पुलिस अपनी जांच में इस नतीजे पर पहुंची है कि रामपाल के कम से कम 300 सुरक्षाकर्मियों को सेना है। उन सैनिकों को पुलिस से रिटायर लोगों ने प्रशिक्षित किया है। ट्रेनिंग देने वालों में नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (एनएसजी) और स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) के लोग शामिल हैं। इंटेलिजेंस से जुड़े सूत्र कहते हैं कि रामपाल की फौज में 25 से 35 वर्ष के लोग भर्ती किए गए हैं। इनके पास प्वाइंट 315 बोर की राइफल, प्वाइंट 32 बोर की राइफल और पिस्टल हैं। सूत्रों पर भरोसा करें तो बाबा के कुछ अनुयायी माओवादियों के साथ भी संपर्क में रहे हैं और उन्होंने माओवादी गुरिल्ला प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इस बात का कयास तब लगाया जाने लगा जब बाबा समर्थक पुलिस से जूझने के लिए पांच पंक्तियों की सुरक्षा तैयार की और पहली कतार में महिला एवं बच्चों को लगाया। पुलिस का कहना है कि रोहतक स्थिति करौंथा आश्रम में रामपाल ने सुरंग बनवा रखी है। वह अक्सर उसी सुरंग में लगी लिफ्ट के माध्यम से प्रकट होता था। यहां सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। आश्रम में छापामारी के दौरान यहां 30 किलो सोने के जेवरात मिले। इनमें ज्यादातर महिलाओं के मंगलसूत्र और हार हैं। यहां नोटों से भरी कई बोरियां और सिक्कों से भरी 17 बोरियां मिली हैं। इसके साथ ही विदेशी शराब की कई बोतलें और अय्याशी के कई और सामान भी बरामद हुए।

बाबा की कद-काठी ऐसे ही नहीं बढ गयी। उसके पीछे सत्ता और व्यवस्था ने भी भूमिका निभाई है। बाबा कबीरपंथ में दीक्षित हुए। उन्होंने अंधविश्वास और कर्मकांड का विरोध किया। वे आर्यसमाजियों के खिलाफ भी बोलने लगे। यहां तक तो ठीक है लेकिन बाबा के आश्रम से जो प्रमाण मिल रहे हैं वह चैकाने वाले हैं। बाबा के आश्रम से भारी मात्रा में नशीली दवाएं मिली है। वहां से पुलिस ने कंडोम बरामद किये हैं। पुलिस को बाबा के आश्रम से खडवों की संपत्ति मिल रही है। आश्रम से बंदूक, गोली, पेटाॅल बम, घातक गैस आदि मिले हैं। ये सामान कोई एक या फिर दो दिनों में जमा तो नहीं हुआ होगा। इस प्राकर के अवैध हथियार और अन्य वस्तुएं जुटाने में समय लगा होगा। फिर बाबा पर प्रशासन और सरकार की कृपा भी रही है। बाबा के दरबार में कुछ राजनेताओं की हाजरी लगने के प्रमाण भी मिल रहे हैं। यही नहीं हरियाणा के बडे नौकरशाह बाबा के दरवार में उपस्थित होते रहे हैं। यह बाबा की ताकत को चिंहित करता है। एक ओर बाबा अंधविश्वास के खिलाफ मोर्चा सम्हाल रखे थे तो दूसरी ओर बाबा के आश्रम में नये प्रकार का अंधविश्वास परोसा जा रहा था। एक अनुयायी कहना है कि बाबा जब ध्यान में होते थे तेा उन्हें दूध से नहलाया जाता था फिर उसी दूध से खीर बनाकर श्रद्धालुओं को खिला दिया जाता था। कहा जाता था कि यही खीर उनके जीवन में मिठास लाएगी। जिस प्रकार का बाबा का व्यक्तित्व खडा किया गया था उस प्रकार के व्यक्तित्व को गढने में सत्ता पक्ष और राजनीतिक दलों की भूमिका बेहद रहस्यपूर्ण होती है। दरअसल सत्ता पर अपनी पकड मजबूत करने के लिए कुछ राजनीतिक दल अपने कार्यकत्र्ताओं को दबाव समूह बनाने की प्रेरणा देते हैं। यही नहीं समाज पर नियंत्रण के लिए प्रशासन भी ऐसे दबाव समूहों का यदा कदा उपयोग करती है। ये समूह कभी भाषा तो कभी प्रांत और कभी कभी आस्था के नाम पर शासन का सूत्रधार बन जाता है। ऐसे समूहों को लगने लगता है कि दरअसल वही सरकार है और इसी के कारण इस प्रकार की समस्या खडी होती है। पंजाब में इसके कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। इस प्रकार के बाबा प्रथम चरण में तो अपने को परंपरा के संतों से जोडते हैं लेकिन बाद में वे स्वयंभू अवतार की घोषणा कर देते हैं। अनुयायियों को बडगला कर पूजा कराने लगते हैं। इसके कारण न केवल आस्था की हानि होती है अपितु समाज को भी बडा घटा होता है। भारत में बाबाओं और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से कई गैरवाजिव कार्य हो रहे हैं। इनके आर्थिक श्रोतों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। ये लोग आखिर किसके लिए कार्य करते हैं और इनको पैसा कहा से आता है, इसपर नजर रखने की जरूरत है, अन्यथा ये किसी भी समय भारतीय लोकतंत्र के लिए समस्या बन सकते हैं।

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