सार्क को नष्ट करने की पाकिस्तानी-चीनी साजिश



संजीव पांडेय
खटासों के बीच सार्क की बैठक काठमांडू में संपन्न हो गई। अंतिम दिन कुछ अच्छे संकेत दिखे। पाकिस्तान सार्क देशों के बीच उर्जा सहयोग से संबंधित ग्रिड विकसित करने के समझौते पर राजी हो गया। इससे पहले तीन महत्वपूर्ण समझौते जिसमें रेल और रोड लिंक भी शामिल था, पर पाकिस्तान हस्ताक्षर के लिए तैयार नहीं हुआ था। हालांकि अभी भी उर्जा सहयोग को छोड़ दे तो रेल और रोड लिंक को लेकर पाकिस्तान का रवैया बहुत अच्छा नहीं है। दरअसल सार्क सम्मेलन की शुरूआत में ही विध्न डालने की कोशिश की गई थी। इसमें अहम भूमिका चीन की थी जो सार्क का आब्जर्वर मुल्क बी है। सार्क की बैठक से पहले चीन ने खेल खेला। नेपाल के कुछ और नेताओं को अपनी तरफ कर चीन ने सार्क की सदस्यता हासिल करने का खेल रचा। वहीं सार्क बैठक के दौरान नवाज शरीफ ने सार्क के एजेंडे को ही विफल करने की कोशिश की। उन्होंने सार्क देशों के रेल, रोड लिंक संबंधित समझौते और क्षेत्रीए पावर ग्रिड संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिए। नवाज शरीफ के इस रवैए ने सार्क बैठक की सफलता पर सवाल उठाए है। काठमांडू में सार्क सम्मेलन की शुरूआत से ठीक पहले चीन ने सार्क की सदस्यता हासिल करने के लिए जोरदार लॉबिंग की। इसके लिए चीन ने हर हथकंडे अपनाए। यहां तक की नेपाली नेताओं को घूस भी दिए है। घुसपैठ की घोषित चीनी नीति के तहत ही यह खेल किया गया जिसमें चीन दूसरे मुल्कों के भौगोलिक, आर्थिक क्षेत्र और तमाम संगठनों में घुसपैठ करता है। दक्षिण-पूर्वी चीन सागर में अकेला पड़ रहे चीन ने बौखलहट में भारत को घेरने की यह योजना बनायी। हाल ही में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में चीन ने अपनी सक्रियता तेज की थी। ये भारत की सक्रिय पूर्वी एशिया नीति का जवाब है। 
 
चीन जिस एजेंडे पर चल रहा है उसमें पाकिस्तान उनका हथियार बना है। नवाज शरीफ ने चीन के इशारे पर ही चीन की सदस्यता की वकालत जहां की वहीं तीन महत्वपूर्ण समझौते पर टांग अड़ाने की कोशिश की। इसमें भी चीन का हाथ था। हालांकि इन समझौते का सीधा लाभ पाकिस्तान को ही मिलेगा। क्योंकि पाकिस्तान गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है और भारतीय पंजाब से लगातार बिजली खरीदने की मांग खुद नवाज शरीफ के भाई और पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ कर रहे है। भारत की इच्छा थी कि रेल, रोड और उर्जा कनेक्टविटी को लेकर सार्क देशों के बीच समझौता हो जाए। इससे व्यापार में भी तेजी आएगी और मुल्कों की जनता भी एक दूसरों से जुड़ेगी। रेल और रोड कनेक्टविटी से संबंधित समझौते में कारगो समेत व्यक्तिगत गाड़ियों को भी सार्क देशों मे ले जाने का प्रावधान रखा गया है। क्षेत्रीए ग्रिड स्थापित होने पर उर्जा व्यापार को गति मिलेगी। दरअसल सार्क की सबसे बड़ी विफलता यही है कि आज 29 साल बीत जाने के बाद भी सार्क देशों का आपसी व्यापार 900 मिलियन डालर के करीब पहुंचा है। यह एशियाई व्यापार का मात्र 5 प्रतिशत है। जबकि पूर्वी एशिया के देशों का आपसी व्यापार सारे एशिआई देशों के कुल व्यापार का 35 प्रतिशत है। इसलिए भारत को सार्क के बजाए पड़ोसी मुल्कों से दिपक्षीय समझौते पर जोर देना होगा। 
 
दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की सक्रियता से चीन घबराया हुआ है। क्योंकि चीन वैश्विक महाशक्ति में मुख्य बाधा पूर्वी एशिया के जापान, वियतनाम आदि देश है।  भारत ने चीन को नियंत्रण में रखने के लिए जापान, वियतनाम से सैन्य और आर्थिक सहयोग बढ़ाया है। सार्क में चीन को शामिल करने के लिए पाकिस्तानी स्टैंड के पीछे कई कारण है। पाकिस्तानी नेता और सेना चीन के अहसान तले दबे है। घनघोर आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में फिलहाल अकेला चीन ही निवेश कर रहा है, क्योंकि चीन पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति को अपने हित में उपयोग करना चाहता है। सौर, कोयला और परमाणु उर्जा में चीन ने पाकिस्तान में निवेश किया है। सौर उर्जा के क्षेत्र में  चीन ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हाल में एक बड़े प्रोजेक्ट में निवेश किया है। एक और अहसान चीन ने अभी पाकिस्तान पर किया। चीन ने बलूचिस्तान के ग्वादर से सिंध के नवाबशाह तक एक गैस पाइप बिछाने को मंजूरी दे दी है। इस पर चीन 3 अरब डालर खर्च करेगा। यह पाइप लाइन आगे ईरान की सीमा तक लेकर जाने की योजना है।
 
भारत को अभी और सावधान रहना होगा। सार्क के माध्यम से क्षेत्रीए सहयोग के बजाए भारत को दो तीन और रास्ते तलाशने होंगे। इसमें पड़ोसी मुल्कों के साथ दिपक्षीय समझौते पर ज्यादा बल देना होगा। खासकर पूर्वी सीमा पर स्थित बांग्लादेश, भूटान, बर्मा और उतर में नेपाल और दक्षिण में श्रीलंका के साथ भारत को दिपक्षीय व्यापार पर जोर देना होगा। चीन भी बड़े सम्मेलनों की आड़ में यही खेल कर रहा है। हाल ही में चीन ने एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग की बैठक में सदस्य देशों के साथ कई दिपक्षीए समझौते किए। भारत को पूर्वी सीमा के देशों के साथ रोड, रेल लिंक के साथ-साथ पावर ग्रिड स्थापित करने पर जोर देना होगा और इसे आगे तक पूर्वी एशिया के अन्य देशों तक लेकर जाना होगा। क्योंकि पश्चिमी सीमा पर स्थित पाकिस्तान की मानसिकता निकट भविष्य में भारत के प्रति बदलने वाली नहीं है। जबकि नेपाल, भूटान, बर्मा और श्रीलंका सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से भारत पर निर्भर है। इन देशों में प्रचलित हिंदू और बौद धर्म का जन्म भारत में ही हुआ है। नेपाल और भूटान की आपूर्ति लाइन भी भारत है। राशन- पेट्रोल तक के लिए ये भारत पर निर्भर है। दोनों मुल्कों की संस्कृति, धर्म और भाषा नजदीक है। भारी संख्या में नेपाली भारत में रोजगार पाते है। भारत को नजरअंदाज कर नेपाली माओवादी चीन के हाथों में खेल रहे थे।
 
चुकिं चीन भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए कई एशियाई मुल्कों के राजनेताओं को  भ्रष्ट कर रहा है, इसलिए विशेष सावधानी की जरूरत है। आरोप है कि सार्क सदस्यता के लिए चीन ने नेपाली नेताओं को घूस दिए। चीन पाकिस्तानी नेताओं और सेना को भी पैसे दे रहा है। हाल ही में पाकिस्तान मे एक सौर उर्जा टेंडर हासिल करने के बदले पाकिस्तानी नेताओं को घूस देने का आरोप एक चीनी कंपनी पर लगा। मध्य एशिया और अफगानिस्तान में भारतीय आर्थिक हितों पर चोट करने के लिए चीन ने नेताओं को घूस दिए। एक मध्य एशियाई देश में भारत को आवंटित हाइड्रोकाबर्न रिजर्व को चीन ने वहां के राष्ट्राध्यक्ष को घूस देकर रद्द करवा दिया।

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