परिवर्तन और ढांचागत सुधार में बीता मनोहर सरकार का एक माह

गौतम चैधरी
हरियाणा के मनोहर लाल सरकार का एक महीना पूरा हो गया। हलांकि किसी राज्य सरकार के कार्यकाल के नफा-नुकशानों का मुकम्मल आकलन महज एक महीने में नहीं किया जा सकता है लेकिन एक महने में सरकार की नीति और चाल को देखकर इतना तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि आखिर सरकार आम लोगों के लिए है या कुछ खास ओहदेदारों के दबाव में काम कर रही है। भाजपा की मनोहर सरकार का आकलन करने वाले अपने-अपने ढंग से आकलन कर रहे हैं, या होंगे लेकिन सरकार ने एक महीने में कम से कम यह तो साबित कर दिया है कि वह आत्मबल से मजबूत और जनता के प्रति जवाबदेह बनने की कोशिश जरूर कर रही है। मनोहर सरकार की कतिपय आलोचनाओं पर हमें पहले दृष्टिनिक्षेप करना चहिए, सो मनोहर सरकार की दो बातों की आलोचना इन दिनों सरेआम हो रही है। पहली आलोचना का कुल लब्बोलुआब सतलोक आश्रम पर दी गयी ढील को लेकर हो रहा है और दूसरी आलोचना सरकार के द्वारा डीजल पर बढाए गये वैट को लेकर किया जाने लगा है। प्रतिपक्षी कांग्रेस पार्टी का कहना है कि सरकार किसान विरोधी है और यही कारण है कि सरकार ने डीजल पर सरचार्ज बढा कर 12.06 प्रतिशत कर दिया है। इस मामले में सरकार के अपने और प्रतिपक्षियों के अपने तर्क हैं लेकिन इस मामले में एक तटस्थ सोच का भी स्थान है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सरचार्ज कम होने के कारण डीजल के खुदरा व्यापार में हरियाणा सरकार को प्रति लीटर 47 पैसे का नुकसान हो रहा था। इसकी भरपाई के लिए सरकार ने यह फैसला लिया है। अब इसी से संबंधित दूसरा पहलू भी है। हरियाणा सरकार ने 06 टोल नाकों को बंद कर देने का निर्णय लिया है। इससे सरकार को 52 करोड रूपये का घाटा होने वाला है लेकिन सरकार ने व्यापार को बढावा देने के लिए राज्य के 06 टोल नाकों को खत्म कर दिया है। इसे लोकहितकारी निर्णय तो कहा जी जा सकता है। 

सतलोक आश्रम पर हुई कार्रवाई के सैद्धांतिक पक्ष को लेकर मनोहर सरकार की आलोचना हो रही है। प्रथमदृष्ट्या जरूर लगा कि सरकार सतलोक के महात्मा पर ज्यादा ही मेहरवानी दिखा रही है लेकिन उसका दूसरा मानवीय पक्ष भी है, जो बाद में सबसे ध्यान में आया। संत रामपाल को गोलियां चलाकर और ताकत का उपयोग कर भी पकडा जा सकता था लेकिन उससे जनहानि होने का बडा खतरा था। जो लोग मारे जाते वे किसी भी मायने में न तो अपराधी थे और न ही उनकी कोई गलती थी। मनोहर सरकार के प्रशासन ने दबाव की रणनीति बनाई और संत रामपाल खुद बाहर निकल आए। इसके कारण जनहानि नहीं हुई और कानून का राज भी कायम रहा। कुल मिलाकर देखें तो एक बडी समस्या से मनोहर सरकार का सामना हुआ और उससे निकलने में हरियाणा प्रशासन और भाजपा की सैद्धांतिक रणनीति ने बडी भूमिका निभाई।

इन दिनों हरियाणा के प्रशासनिक गलियारों में न तो सत्ता की धमक दिखती है और न ही सत्ता का मायाजाल हावी होता दिखाई देता है। मनोहर लाल की सरकार के मंत्री को कोई जहां चाहे मिल सकता है। हालांकि सरकार के नौकरशाहों में कडक और अकड अभी भी बनी हुई है लेकिन सत्तापक्ष का राजनीतिक सेटप पूर्णरूपेण बदल चुका है। निःसंदेह सरकार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार के लोगों की ताकत बढी हुई सी दिख रही है, यही नहीं कुछ संत-महंथों को भी सरकार के अंतपुर में आना-जाना प्रारंभ हो गया है लेकिन सामान्यतः क्षेत्र और प्रदेश की जनता के लिए मुख्यमंत्री अपने नजदीक का सा दिखता है। सरकार बनने के बाद से लेकर अभी तक तीन मंत्रिमंडल की बैठकें हो चुकी है। लिहाजा तीसरी बैठक में सरकार ने कई अहम फैसले लिये, जिसे निःसंदेह लोकोपयोगी कहा जाना चहिए। हरियाणा के कर्मचारी एवं अधिकारियों का अवकाश आयु को घटाकर 58 कर दिया गया है। यह सरकार का बडा फैसला है। हालांकि इसके कारण संभव है कि हरियाणा के कर्मचारी और अधिकारी सरकार के खिलाफ मोर्चा खालें लेकिन प्रदेश के रोजगार श्रृजण के लिए यह फैसला महत्व का है।

हरियाणा के विगत सरकारों पर लगातार आरोप लगते रहे कि उनके निहाय अव्वल करींदे सरकारी नियुक्तियों में धांधली करते हैं। मनोहर सरकार ने इसके लिए अहम फैसला लिया और घोषणा किया कि अब सरकारी भर्ती के लिए कोलेजियम बनाया जाएगा और कोलेजियम ही इस प्रकार की नयुक्तियों के लिए जिम्मेबार होगा। अब नए सदस्यों की नियुक्ति कोलेजियम के माध्यम से की जाएगी। सरकार ने एक अहम फैसले में हरियाणा अध्यापक भर्ती बोर्ड अधिनियम को निरस्त करने का निर्णय लिया। यह फैसला भी सरकार का अहम है और लोकोपयोगी भी।

हरियाणा के मनोहर सरकार की रणनीति को यदि गौर से देखा जाये तो विगत एक महीने में सरकार ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि यह सरकार सब के लिए है और समान रूप से पूरे प्रदेश का विकास करने वाली है। मंत्रिमंडल के गठन से लेकर अबतक के नीतियों से साफ जाहिर होता है कि सरकार न केवल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का खयाल रख रही है अपितु क्षेत्र के जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर भी काम कर रही है। सामान्य कर्मचारियों में भी सरकार और शासन का दम दिखने लगा है। अब कर्मचारियों को नौ बजे तक अपने कार्यालय में उपस्थित होना पड रहा है। हालांकि कुछ अधिकारी और कर्मचारी आज भी अपने काम के प्रति कोताही बरत रहे हैं लेकिन सरकार का प्रशासनिक ढांचा थोडा दुरूस्त जरूर हुआ है। अब काम के प्रति दबाव बढा है और कर्मचारी ही नहीं अधिकारियों को भी कम से कम सुवह 09 बजे से लेकर शाम को 05 बजे तक अपने कार्यालय में उपलब्ध रहना पड रहा है। इसकी के्रडिट निःसंदेह मनोहर सरकार को ही जानी चाहिए। हालांकि अभी भी हरियाणा में प्रशासनिक और ढांचागत स्तर पर कई बदलाव बाट जोह रहा है लेकिन कुल एक महीने में सरकार ने अपनी नीति से यह साफ कर दिया है कि हरियाणा में अब सकारात्मक परिवर्तन अपरिहार्य है।

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