पंजाब के गांवों में रचनात्मक परिवर्तन में लगा है आरएसएस


गौतम चौधरी
विगत दिनों अमृतसर के सांसद और भारत के निम्न सदन में कांग्रेस के उप नेता कप्तान अमरेन्द्र सिंह ने एक बयान जारी कर कहा था कि राट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पंजाब के 200 गांवों में नए सिरे से शाखाएं खोल रहा है, जो चिंता का विषय है और इससे पंजाब के ग्रामीण क्षेत्र में सापं्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण माहौल बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है। कप्तान अमरेन्द्र के बयान को आधार बनाकर पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सरदार प्रताप सिंह बाजवा ने आनन फानन मंे एक समिति बनाई, जिसे पंजाब के गांवों में संघ के विस्तार पर अविलंब रिपोर्ट तैयार कर सौंपने का निर्देश दिया। इधर विभिन्न समाचार माध्यमों में खबरें चलने लगी कि पंजाब में आरएसएस भारतीय जनता पार्टी का आधार तैयार करने में लगा है। खबरों में यह भी बताया जाने लगा कि केन्द्र और हरियाणा में भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बनाने के बाद अब पंजाब मंे भी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी जिसके लिए आरएसएस ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का आधार तैयार कर रहा है। इस खबर में कितनी सत्यता है यह पता नहीं लेकिन इस खबर ने जहां एक ओर पंजाब की सियासत में भूचाल ला दिया वहीं दूसरी ओर अमूमन प्रचार से बचने वाला आरएसएस को भी बाध्य व असहज होकर बयान जारी करना पड़ा। लिहाजा संघ के पंजाब प्रांत के सह संघचालक बिग्रेेडियर जगदीश गगनेजा ने अपने बयान में कहा कि पंजाब में आरएसएस सामान्य रूप से अपने काम में बिगत 80 सालों से लगा हुआ है।

उन्होंने कहा कि देश विभाजन के समय आरएसएस ने बड़ी भूमिका निभाई। आरएसएस का दावा है कि पाकिस्तान से आए हुए लोगों के पुर्नरवास की व्यवस्था को आज भी लोग याद करते हैं। ब्रिगेडियर गगनेजा का कहना है कि शाखाएं कितनी लग रही है और यह कहां-कहां लग रही है, सवाल इसका नहीं है, शाखाओं के माध्यम से समाज में जो रचनात्मक परिवर्तन आया है, उस पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने इसके कई उदाहरण प्रस्तुत किए और कहा कि आधिकारिक रूप से पंजाब में 682 शाखाएं लग रही है। एक दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक साल 40 से 50 शाखाएं बढ़ती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सूत्रों पर भरोसा करें तो अमूमन शाखाएं बढती घटती रहती है। यह सालाना वृत के माध्यम से पता चलता है। बडे नगरों में शाखांए कुछ स्थाई है तो कुछ अस्थाई भी है। संघ की शाखाओं पर संख्या का भी बढना घटना लगा रहता है। संघ का दावा है कि शाखा लगाना, संपर्क करना, कार्यकर्ताओं का निर्माण, व्यक्तित्व विकास यह सब आरएसएस की सामान्य प्रक्रिया है और यह संघ की कार्य पद्धति का अंग भी है। इसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। यह प्रचार करना कि संघ ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाओं का विस्तार कर रहा है एक दृष्टि से यह तो सत्य है लेकिन उसके राजनीतिक मायने निकालना सरासर गलत है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं का दावा है कि जो लोग संघ के विस्तार को किसी खास पंथ के खिलाफ मानते हैं या फिर पांथिक पहचान पर आघात मानते हैं वह सही नहीं है। संघ के नेताओं का कहना है कि किसी जमाने में मास्टर तारा सिंह जैसे सिख नेता विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही नहीं पंजाब में संघ और सिख पांथिक संगठनों ने इकट्ठे कई मोर्चों पर काम किया है। जब देश में सिखों के खिलाफ कुछ राजनीतिक दलों ने मोर्चा खोला तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आगे बढकर देशभर में सिखों का साथ दिया। संघ के नेताओं का यह भी दावा है कि संघ को राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जा सकता है। संघ का आधार केवल और केवल राष्ट्रवाद है। संघ सदा से देश की एकता और अखंडता के लिए काम किया है और करता रहेगा। संघ का कार्यक्षेत्र पूरा देश है। संघ की शाखाएं पूरे देश में फैली है। संघ का दावा है कि संघ की पहुंच जहां भी है वहां अमन है। संघ का दृष्टिकोण सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन है। देश और समाज के हितों के लिए संघ सदा से आगे रहा है। इन दिनों देश में कही आपदा आए संघ के लोग सबसे आगे होते हैं। हालिया कश्मीर का उदाहरण सबके सामने है। 

आरएसएस की पूरे देश भर में सब मिलाकर लगभग 50 हजार शाखाएं हैं। सामान्य रूप से इन दिनों शाखाओं पर 07 से लेकर 12 तक की संख्याएं होती हैं। पंजाब में लगभग 13 हजार गांव है। आरएसएस का दावा है कि उसमें से 9000 गांवों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आरएसएस का संपर्क है। संघ आदर्श गांव के सिद्धांत में विश्वास करता है। संघ ने गांव में शाखाओं के माध्यम से कई रचनात्क प्रकल्पों को अंजाम दिया है। आरएसएस के विचार परिवार के संगठनों ने पंजाब में हजारों सेवा के प्रकल्प खोल रखे हैं। संघ ने इन दिनों पंजाब के गांव में नशों के विरूद्ध अभियान छेड़ रखा है। स्वास्थ्य, पेयजल, यातायात, शिक्षा, समरसता, सांस्कृतिक उत्थान, गो पालन, कृषि विकास, ग्राम स्वराज जैसे आरएसएस के कई प्रकल्प पंजाब में संचालित है, जो पंजाब को दिशा दे रहा हैं। ऐसे में यदि कोई आरएसएस को सियासी नजरिए से देखे तो उसका वह अपना दृष्टिकोण हो सकता है लेकिन आरएसएस अपने कार्य में बिना किसी लाग लपेट और राग द्वेष के लगा है। इसके साकारात्मक परिणाम भी आने लगे हैं। राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ सिर्फ राजनीति करते हैं लेकिन आरएसएस अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार पहल में लगा है जिसे निसंदेह सराहणीय कहा जाना चाहिए। 

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