पंजाब में हंग असेंबली के आसार, तीन नहीं अब चार धरों के बीच होगी लड़ाई

गौतम चौधरी
अभी पंजाब विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा भी नहीं है लेकिन सियासी दलों ने अपनी चतुरंगनी सेना सजा ली। पारंपरिक रूप से इस बार भी सत्तारूढ अकाली-भाजपा गठबंधन के साथ मुख्य विपक्षी कांग्रेस की लड़ाई का ही लब्बोलुआब सामने आ रहा है लेकिन इन दिनों जिस प्रकार आम आदमी पार्टी ने अपनी पकड़ और बढ़त मजबूत की है उससे अब साफ लगने लगा है कि यह दिल्ली विधानसभा चुनाव की तरह दोनों महबूत सियासी आधार वाले दलों को धूल चटाकर ही दम लेंगी। हालांकि प्रेक्षकों का आकलन है कि कई विवादों के साथ दो-चार होने और कई कद्दाबर नेता के पार्टी से निकाले जाने के बाद से आम आदमी पार्टी की छवि को थोड़ा धक्का लगा है और उसका सियासी ग्राफ भी थोड़ा डाउन गया है लेकिन हकीकत कुछ और बयां कर रही है।
पंजाब के ग्रामीण इलाकों में लोग यही कहते सुने जा रहे हैं कि दो दलों के बीच के बंदर-बांट को हम बराबर से देखते रहे हैं। इस बार तो एक मौका आम आदमी पार्टी को जरूर देंगे। छोटी-छोटी रैली से लेकर बड़ी रैलियों तक में जो भीड़ एकत्रित हो रही है आप के नेता उसे अपनी पूंजी बताते हैं और कहते हैं कि हम इन्ही ताकतों के कारण पंजाब फतह कर पाएंगे। आम आदमी पार्टी नेताओं के दर्प को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे किसी अन्य की तुलना में कमजोर हैं। उनकी तैयारी भी बेमिसाल दिखती है और इनके कार्यकर्त्ताओं में गजब का जोष दिख रहा है। आंकडे़ बताते हैं कि पंजाब का 18 साल से लेकर 35 साल तक का लगभग 60 प्रतिषत युवा आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है। ये नौजवान आम आदमी पार्टी के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। हालांकि पार्टी के अंदर के कलह से ये थोड़ क्षुब्ध हैं लेकिन इनका कहना है कि जो लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं या पार्टी के प्रति उदासीन रवैया अपना रहे हैं उससे पार्टी को थोड़ नुकसान तो होगा लेकिन पंजाब में दो राजनीतिक परिवारों ने जो गंध फैला रखा है उसका फायदा अंततोगत्वा आम आदमी पार्टी को ही मिलने वाली है।
पहले की तुलना में कांग्रेस पार्टी ने जबरदस्त तरीके से अपनी खोई उर्जा बटोरने की कोषिष की है। सनद रहे पंजाब में कांग्रेस का व्यापक जनाधार रहा है। कांग्रेस पार्टी कई बार सरकार का नतृत्व कर चुकी है। पिछली दफा भी कांग्रेस सरकार बनाते-बनाते रह गयी थी। राजनीतिक विष्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के अति उत्साह ने पिछली बार पार्टी की लुटिया डूबो दी लेकिन इस बार कैप्टन के नेतृत्व में पार्टी बड़े फूक-फूक कर कदम रख रही है। साथ ही समानधर्मी पार्टियों के साथ दोस्ती का हाथ भी बढ़ा रही है। मिल रही खबर से तो यही लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लेफ्ट फ्रंट के साथ समझौता कर लेगी। दोनों ही ओर से सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है लेकिन स्थानीय कार्यकर्त्ताओं के कलह के कारण दोनों की दोस्ती परवान नहीं चढ पायी है। केन्द्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद यह होगा लेकिन यह चुनाव घोषणा के बाद ही संभव हो पाएगा। इस प्रकार पंजाब कांग्रेस की घेरेबंदी को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। कांग्रेस की ताकत कौलेक्टिव एस्टेंथ भी है जो अभी तक आम आदमी पार्टी में देखने को नहीं लिा है। कांग्रेस एक बड़े हिन्दू मतों को भी इस बार अपने पक्ष में करने में कामयाब हो रही है। आम आदमी पार्टी के बारे में यह प्रचार होने लगा है कि इस पार्टी में चरम वामपंथी और हार्डलाईनर सिख जबरदस्त तरीके से सक्रिय हो गये हैं। साथ ही पार्टी जिस नेता, अधिवक्ता एच एस फुल्का को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने वाली है उसकी भी छवि एक सिख एक्टिविस्ट के रूप में ही है। इसलिए इसलिए लचीला रवैया अपनाने के कारण जहां एक ओर कांग्रेस के मुख्यमंत्री के दावेदार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की छवि निखरने लगी है वहीं आम आदमी पार्टी के बारे में दुष्प्रचार ने उसकी छवि को थोड़ा नीचे जरूर गिरा दिया है। 
दूसरी ओर जो लोग आम आदमी पार्टी को छोड़कर चले गये और जो लोग अन्य अन्य दलों को छोड़कर आ रहे हैं उनका भी अपना-अपना आधार वोट है। वे तमाम नेता एकत्रित हो जाएं, जिसकी संभावना अब बनने लगी है तो यह भी एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित होंगे और पारंपरिक राजनीतिक दलों को चुनौती देने में कामयाब भी होंगे। इसमें सबसे बड़ा नाम पटियाला के सांसद धर्मबीर गांधी का हैं। इसके बाद आम आमदी पार्टी के पूर्व पंजाब संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर का नाम आता है। तीसरे हैं भाजपा को छोड़कर नया मंच तैयार करने वाले नवजोत सिंह सिधू, भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान सरदार परगट सिंह और बैंस बन्धू। इसके अलावा आम आदमी पार्टी से पहले ही निकाल दिए गये योगेन्द्र यादव वाला गुट स्वराज पार्टी। स्वराज पार्टी इन तमाम नेताओं को इकट्टा कर एक बड़ी जमात खड़ी करने के प्रयास में है। इनका यह अभियान सफल रहा तो आने वाले समय में पंजाब का विधानसभा चुनाव चतुष्कोणीय होगा। इसमें किसको धाटा होगा या किसको लाभ होगा यह तो समय बताएगा लेकिन इतना तय है कि जो दिख रहा है फल उसके ठीक विपरीत आएगा। क्योंकि चौथा धरा भी धीरे-धीरे इतना मजबूत हो जाएगा कि उसको नजरअंदाज करना कठिन हो जाएग। यह धरा अपनी कितनी सीटें निकालेगा यह तो पता नहीं लेकिन यह तीनों ही सियासी दलों को घाटा पहुंचाएगा। इसमें सबसे ज्यादा घाटा अकालियों को होने वाला है। हालांकि अकाली यह सोचकर अभी मंद-मंद मुस्का रहे हैं कि प्रदेष में जितनी पार्टियां बनेगी उतना सत्ता विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण में विभाजन होगा लेकिन अकाली यह नहीं समझ पा रहे हैं कि जो मत एकमुस्थ उन्हें मिलने वाला था उसमें भी विभाजन की पूरी संभावना है।
सतही तौर पर देखें तो अभी फायदा अकालियों को होता दिख रहा है लेकिन गंभीरता से देखें तो इसका सीधा लाभ कांग्रेस को होता दिख रहा है। साथ ही चौथे फ्रंट के जो लोग जीतकर आएंगे वे सत्ता विरोधी जनादेष के साथ ही आएंगे और विपरीत परिस्थिति में जब विधानसभा में किसी को बहुमत नहीं मिलेगा, जिसकी पूरी संभावना है वैसे में इनकी ताकत कई गुणा बढ़ जाएगी। तब ये लोग किसी कीमत पर अकालियों का समर्थन न करके आप या कांग्रेस के साथ सौदा करेंगे। वैसी परिस्थिति में भी कांग्रेस का हाथ उपर रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जो भी हो, इस बार पंजाब का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प दिख रहा है। चार धरों के बीच लड़ाई की संभावना है। फिलहाल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच की टक्कर दिख रही है लेकिन अकाली गठबंधन की ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसमें चौथा फ्रंट भी बेहद बारीक और मजबूत पकड़ के साथ आगे बढ़ता दिख रहा है। क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन परिस्थितियां तो यही बया कर रही है कि पंजाब विधानसभा का चुनाव इस बार किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं देने जा रहा है।

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