पाकिस्तान को पराभूत करने में नरेन्द्र मोदी का कूटनीतिक प्रयास कारगर

गौतम चौधरी
उरी आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार के द्वारा कड़े फैसले की प्रतीक्षा की जा रही थी। भारतीय अवाम को यह पक्का भरोसा था कि अबकी बार हमारी सरकार पाकिस्तान को जरूर कोई सबक देगी, जिससे वह आतंकी खेती करने से बाज आएगा। पहले तो लगा कि मोदी सरकार भी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही निरा बयानबाजी ही करती रहेगी लेकिन थोड़ी प्रतीक्षा के बाद अब सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ निर्णय की प्रक्रिया प्रारंभ करती नजर आ रही है। मोदी सरकार का सार्क देशों के बीच पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति अब रंग लाने लगी है। आतंकवाद के खिलाफ इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन का वहिष्कार यह कोई साधारण घटना नहीं है। अपने गठन के पूरे इतिहास में पहली बार सार्क सम्मेलन स्थगित किया गया है। अब ऐसा लगता है कि सार्क में पाकिस्तान बिल्कुल अलग पड़ जाएगा और भारत सार्क को अपने ढंग से नियंत्रित करने में सफल होगा। मोदी सरकार का यह स्वागत योज्ञ कदम है। क्योंकि लड़ाई किसी समस्या का समाधान नहीं है। लड़ाई अपने आप मे समस्या है। फिर हमारी आर्थिक स्थिति भी हमें लड़ने को इजाजत नहीं देती है। 
यह पाकिस्तान के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि अध्यक्ष नेपाल इस कोशिश में था कि आयोजन स्थल बदल दिया जाए। पर भारत ने उसे बता दिया था कि एक देश ने ऐसा माहौल बना रखा है जो शिखर सम्मेलन के लिए हितकारी नहीं है। जानकारी में रहे कि वर्ष 1985 में सात दक्षिण एशियायी देशों के बने आर्थिक व राजनीतिक संगठन-सार्क (दक्षेस)-के सदस्य देशों की संख्या डेढ अरब से उपर है। भारत इसके झंडे तले एशियायी देशों में सहयोग बढ़ाने के लिए सक्रिय रहा है और उसी की पहल पर 2007 के सम्मेलन में अफगानिस्तान को आठवां सदस्य बनाया गया था। अफगानिस्तान के अलावा बांग्लादेश ने भी इस्लामाबाद सम्मेलन में जाने से इनकार कर दिया। ये दोनों ही कहते आ रहे थे कि आतंकवाद के साथ पाक के जुड़ाव के कारण वे सम्मेलन में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं। सम्मेलन के बहिष्कार में शामिल होने वाला भूट्टान चौथा देश था। श्रीलंका पाकिस्तान के खिलाफ पहले से मोर्चा खोले हुए है।
भारत में अलगाववादी गतिविधियों को हवा देने और इस देश में आतंकी भेजकर हमले करवाने से भारत का धैर्य अब जवाब दे रहा है। भारत ने पड़ोसी मुल्क से रिश्ता सुधारने का कोई मौका नहीं छोड़ा लेकिन इसी माह उरी सैन्य ठिकाने पर सीमापार से घुसपैठ कर आए आतंकियों के हमले के बाद भारत ने आक्रामक रवैया तेज कर दिया है। पाकिस्तान को अलग-थलग करने की दिशा में सिंधू जलसंधि की समीक्षा करने की बात भी कही जा रही है। यह जलसंधि दुनिया की सबसे उदार जलसंधियों में से एक है। वर्ष 1960 में भारत-पाक के बीच हुई संधि के तहत पड़ोसी देश को भारत से निकलने वाली नदियों का 80 प्रतिशत नदी जल दिया जा रहा है। अब हमारा रवैया इन नदियों के जल का अधिकाधिक दोहन अपने ही यहां करने का है। इससे बौखलाए पाक ने अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में मामला ले जाने की धमकी दे रहा है। यदि पाकिस्तान विश्व पंचाट में गया तो उसे ही मुंह की खानी होगी क्योंकि इस जलसंधि के तहत भारत की उदारता जगजाहिर है। भारत एक और निवारक उपाय के तौर पर पाक को सर्वाधिक तरजीही मुल्क (एमएफएन) का दर्जा वापस लेने पर भी विचार कर रहा है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में संभवत: इस विषय पर कुछ ठोस फैसला होने की उम्मीद है। भारत का मानना है कि माहौल खराब होने के बीच इस्लामाबाद में सम्मेलन का कोई औचित्य है। वैसे भारत द्वारा दक्षिण एशिया में सहयोग से प्रतिबद्धता जारी रखने का निश्चय अच्छी बात है उसे इसपर कायम ही रहना चाहिए और सार्क को उत्तरोत्तर मजबूत बनाने की कवायद जारी रखनी होगी। लेकिन देश की सुरक्षा के शर्तो पर तो एकदम नहीं। 
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और किसी कीमत पर भारत इसे अलग नहीं होने देगा लेकिन पाकिस्तान की नीति सदा से कश्मीर को हड़पने की रही है। पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि आतंकवादियों को संरक्षण, पोषण, प्रशिक्षण देने वाले देश की रही है। ऐसे में पाकिस्तान को अलग-थलग तो करना ही होगा। हालांकि अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए पहले अमेरिका और अब चीन पाकिस्तान की तरफदारी कर रहा है लेकिन यह समर्थन चीन के लिए भी हितकर नहीं होगा, जिस प्रकार अमेरिका के लिए हितकर साबित नहीं हुआ। क्योंकि पाकिस्तान की रणनीति चीन के हित में भी नहीं है। 
आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में सबसे ज्यादा मानवाधिकार का उलंघन होता है। पाकिस्तान के पास 20 हजार से ज्यादा आत्मघाती हमलावर हैं। पाकिस्तान के संविधान में ही इस्लाम के लिए काम करने की बात कही गयी है। पाकिस्तान का लोकतंत्र महज एक दिखावा है। आज भी वहां सेना ही सबकुछ करती है। ऐसे में भरत जैसे लोकतांत्रिक, धर्मनिर्पेक्ष, समाजवादी गणतंत्र को पाकिस्तान से इतर अपना रास्ता तो ढुंढना ही होगा। हमने सिर्फ दोस्ती के आधार पर उससे बातचीत शुरू की जिसका जवाब उसने पठानकोट, उरी पर हमले करवाकर और बहादुर अलि जैसे आतंकी भारत में घुसाकर दिया। नरेन्द्र मोदी ने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को बुलाने से पहले कोई शर्त नहीं रखी थी। प्रधानमंत्री का इस्लामाबाद या लाहौर दौरा किन्ही शर्तो के आधार पर नहीं थे। पर पाकिस्तान ने इस उदारता का मूल्याकण करने में मूर्खता दिखाई। अब भारत को पाकिस्तान के लिए कड़े कूटनीतिक रास्ते के अलावा और कोई दूसरा विकल्प बचा ही नहीं है। 
इसलिए भारत को पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा तो खोलना ही होगा लेकिन सतर्कता भी रखनी होगी। विश्व की बड़ी शक्तियां भारत पाकिस्तान को लड़ाना चाहती है। हालांकि लड़ाई नहीं हो इसके लिए पाकिस्तान को भी प्रयास करना चाहिए लेकिन पाकिस्तान यदि मूर्खता कर रहा है तो भारत को भी उसी के तरह अपना व्यवहार नहीं करना चाहिए। पहली बात, जहां तक हो सके युद्ध टाला जाए और दूसरा कूटनीतिक ढंग से पाकिस्तान को पहले दक्षिण एशिया में अलग-थलग किया जाए और दूसरे चरण में विश्व के देशों के बीच यह बताया जाए कि पाकिस्तान किस प्रकार आतंकवादियों का संरक्षण कर रहा है। यह संरक्षण आने वाले समय में केवल भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए भी खतरनाक होगा। इसलिए कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रणनीति बेहद करगर और दूरगामी प्रतीत हो रही है। हम इन्ही रणनीतियों से पाकिस्तान को पराभूत कर सकते हैं। 


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