भारत के मुस्लिम विद्वानों व धार्मिक नेताओं के लिए एक सबक


कलीमुल्ला खान

यह आलेख मेरे मित्र कलीमुल्ला खान जी द्वारा मुझे उपलब्ध कराई गयी है। खान साहब छपरा बिहार के रहने वाले हैं और इस्लाम के बरेलवी फिरके से अपना ताल्लुक रखते हैं। उर्दू और फारसी में इन्होंने कई किताबें भी लिखी है। मैं अपने ब्लाग पर अब लगातार इनका आलेख प्रसारित करूंगा। इनके आलेख पर प्रतिक्रिया भी अपेक्षित है। 
विगत दिनों दक्षिण भारत से एक खबर आई। खबर अच्छी है इसलिए जिक्र करना जरूरी समझता हूं। किसी मस्जिद में जुम्मे की नवाज के बाद मस्जिद के आलिम मौलवी ने अपनी तकरीर पेश की। अमूमन तरकीर में धार्मिक बातें बताई जाती है। इस्लाम और पैगम्बरों के इतिहास पर चर्चा होती है लेकिन खबर के अनुसरा यह तकरीर अन्य तकरीरों से भिन्न था। बातों बात में विद्वान मौलवी ने सरेआम आईएसआईएस को इस्लाम विरूद्ध घोषित कर दिया और साफ शब्दों में कहा कि जिस प्रकार आईएसआईएस वाले कुरानमजीद और हदीस की व्याख्या करते हैं वह इस्लाम है ही नहीं। इमाम साहब ने कहा कि जेहाद का मकसद दूसरे धर्म या संप्रदाय वालों की हत्या नहीं है। जेहाद का मतलब साफ तौर पर जो मानवता के धर्म की धज्जियां उड़ाता है उसके खिलाफ धार्मिक संघर्ष है। जेहाद का मकसद अपने अंदर की बुराइयों के खिलाफ संघर्ष भी है। इस कसौटी पर इमाम साहब ने मोमिनों को आईएसआईएस के खिलाफ जेहाद की वकालत कर दी। ये नई बात है और मैं समझता हूं कि इस प्रकार की प्रवृति का प्रचार होना चाहिए।
इसी से मिलता-जुलता उदाहरण की खबर बांग्लादेश से आई है। बांग्लादेश में आतंक की फौजों का डटकर मुकाबला करने के लिए तेजी से उभर रहे उलेमाओं यानी इस्लामिक विद्वानों और इमामों की रणनीति से, अनेक बहुसांस्कृतिक देश भी एक सबक सीख सकते हैं। आतंकवाद के विरूद्ध इस आन्दोलन को शुरू करने का निर्णय 10 जुलाई को गुलशन हमले के 09 दिन बाद, जिसमें 29 लोग मारे गए थे, देश की कानून-व्यवस्था की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा एक विशेष बैठक में लिया गया था। कुछ मुख्य उलेमा जहां मुम्बई व पीस टीवी के मुख्य वक्ता जाकिर नाईक के खिलाफ कार्यवाही चाहते थे वहीं अन्य उलेमाओं द्वारा इस संदर्भ में लिखत में शिकायत भी दर्ज करवाई गई। बांग्लादेश सरकार के द्वारा इन शिकायतों की जांच की गई और यह पाया गया कि जाकिर नाईक की शिक्षाएं कुछ मामलों में कुरान व हदीस से मेल नहीं खती है और असमंजस की स्थिति पैदा करती है। याद रहे आदरणीय विद्वान जाकिर नाईक के तकरीर को सुनकर ही बांग्लादेशी चरमपंथी अपने नापाक इरादों को अंजाम देने की योजना बनाए थे। 
बड़े पैमाने पर कट्टरवाद की खबरों को देखते हुए बांग्लादेश की सरकार ने कट्टरवाद को काबू करने और इन आतंकी संगठनों के खत्मे के लिए एक योजना प्रारंभ की है। त्वरित कार्रवाई हेतु संपूर्ण बांग्लादेश में पुलिस-थाना स्तर पर आतंक-विरोधी जन-प्रतिरोध समितियों जिनमें पुलिस, सामान्य नागरिक, राजनेता आदि शामिल है, की स्थापना की जा रह है, साथ ही पूरे देश में 250000 मस्जिदों में इमामों द्वारा शुक्रवार की नमाज के दौरान खुद निरीक्षण भी किया जा रहा है। उन्हें वास्तविक इस्लामिक विचारधारा के साथ सकारात्मक विचारों का प्रचार करने के लिए भी कहा जा रहा है, ताकि आतंकवाद व कट्टरवाद पर लगाम लगाई जा सके। आतंकवाद की निंदा करने के लिए एक लाख से अधिक इमामों ने एक आतंकवाद विरोधी फतवे पर भी अपने हस्ताक्षर किए हैं और वे स्वयं आगे आकर संदिग्ध गतिविधियों पर तीखी नजर रख रहे हैं। 
यह काबिल-ए-गौर है कि एक इस्लामिक मुल्क के रूप में बांग्लादेश की अलग पहचा है और यह उन सब से बिल्कुल अलग है जिसका प्रचार दूसरे मुस्लिम देशों में किया जाता है। धर्म में दो तरह के बम होते हैं, एक है-गरीबी और दूसरा है-सांप्रदायिकता, जिनको जल्द से जल्द निष्क्रय किया जाना आवश्यक है। यह भी कहा जाता है कि आतंकी-संगठनों की वृद्धि और इनकी जड़ें, बांग्लादेश को पाकिस्तान से विरासत में मिली है, जमात-ए-इस्लामी एक ऐसी पार्टी है जो पाकिस्तान की आक्रामक सेनाओं और खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से इस्लाम को अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल कर रही है। 
कुल मिलाकर देखें तो अपने देश में गैर सरकारी स्तर पर और बगल के मुल्क बांग्लादेश में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर इस्लाम की गलत व्याख्या करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान तारीफ के योग्य है और इसे आम-अवाम से जोड़ने की जरूरत है। इस अभियान को भारत में अभी तक सरकारी स्तर पर सहयोग नहीं मिल पा रहा है लेकिन समाज में इसके लिए जोरदार माहौल बनने लगा है। मुझे तो ऐसा लगने लगा है कि आने वाले समय में यह एक आन्दोलन के रूप में खड़ा हो जाएगा जो आधुनिक इस्लाम की पृष्ठभूमि का पृष्ठपोषण तक करने में अपनी भूमिका तय करेगा।

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