पंजाब को अशांत करने के फिराक में हैं अलगाववादी

Gautam Chaudhary
आसन्न विधानसभा चुनाव को हथियार के रूप में कर रहे उपयोग
पंजाब में आतंकवाद पर लिखने से पहले 10 बार सोचना होता है। पंजाब में आतंकवाद के बारे में अब आम धारणा यह बन गयी है कि यहां आतंकवाद नहीं है। लेकिन प्रेक्षकों की मानें तो कुछ ऐसे तत्व आज भी पंजाब में सक्रिय हैं जो यदा-कदा आतंकवाद को जीवित रखने में अपनी भूमिका निभा जाते हैं। क्रमिक ढ़ंग से व्याख्या करना उचित रहेगा। साथ ही इस मामले को आने वाले समय में चुनाव से जोड़ कर भी देखा जा सकता है।
पहले चरण में कथित हिन्दू नेताओं को टारगेट किया गया। पंजाब के स्टैबलिसमेंट से इस बात का प्रचार किया गया कि ये नेता खुद अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अपने उपर आक्रमण करवा रहे हैं। जब जांच रिपोर्ट आई तो बात भी साफ हो गयी कि ये, खासकर िशवसेना से जुड़े हुए नेताओं का पहले से यही चरित्र रहा है। बात आई गयी हो गयी लेकिन उसके बाद पूरे पंजाब में हिन्दू, मुस्लिम, सिख समुदाय के धार्मिक चिंहों पर आक्रमण होने लगे। कहीं श्री गुरूग्रंथ साहिब जलाए गए तो कहीं गीता को अपवित्र किया गया। कहीं-कहीं पवित्र कुरआन की प्रतियां भी जलाए जाने का मामला सामने आया। तीसरे चरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उपर आक्रमण हुआ। पहला आक्रमण लुधियाना में एक दैनिक शाखा के बाहर किया गया तो दूसरा आक्रमण पंजाब प्रांत सह संघचालक ब्रिगेडियर जगदीष गगनेजा पर कातिलाना हमला किया गया। खैर बीते दिन उन्हें चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। अब गगनेजा जी हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी मृत्यु ने कई सवाल छोड़े हैं जो प्रकारांतर में जवाब लिए पंजाब के क्षितिज पर मंडराते रहेंगे।
इस दौरान केवल हिन्दू नेता ही नहीं मारे गए हैं कुछ सिख समन्वयवादियों पर भी हमले हुए हैं। नामधारी सिख समाज की सबसे बड़ी धार्मिक नेता माता चांद कौर की तो हत्या ही कर दी गयी। यह तब हो रहा है जब विधानसभा का चुनाव सर पर है। इसके पीछे कौन लोग हैं और इनकी मंषा क्या है इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए अन्यथा यह पंजाब के लिए हितकर तो नहीं ही होगा केन्द्र और देष के लिए भी अहितकारक होगा। महज चुनाव जीतने या किसी को हराने के लिए यदि इस प्रकार के कुकृत्य किये जा रहे हैं तो यह बेहद खतरनाक प्रवृति है और इसके समन के लिए राज्य एवं केन्द्र दोनों सरकारों को सतर्कता के साथ काम लेने की जरूरत है। यह सर्वविदित है कि पंजाब में सक्रिय चरमपंथी अपनी ताकत फिर से प्रप्त करना चाहते हैं। हालांकि अब सीमा पर तारों की घेरेबंदी है और पड़ोसी देष भी उतना मजबूत नहीं है कि वह क्षद्मयुद्ध के दो मोर्चे खोल सके। ऐसे में चरमपंथी अपनी ताकत को संगठित करने और अपना एझिस्टेंस बनाए रखने के लिए कुछ ऐसा करते रहना चाहते हैं कि दुनिया की नजरों में वे बने रहें। ये सारी घटनाएं इसी सोच का नतीजा है लेकिन इससे फायदा किसे हो रहा है और घाटे में कौन जा रहा है इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
आगामी 2017 में पंजाब विधानसभा का चुनाव होना है। तीन पार्टियां कमर कसकर मैदान में हैं और चैथा मंच तैयार हो रहा है। सत्तारूढ अकाली-भाजपा को देखें तो यह सदा से चरमपंथियों के खिलाफ रही है। हालांकि प्रथम चरण में बादल गुट वाले षिरोमणि अकाली दल भी भारतीय संघ का विरोधी था लेकिन समय के थपेड़े और भारतीय जनता पार्टी के साथ ने उसे भारतीय बहुलतावाद को अपनाने के लिए विवष कर दिया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सदा से आतंकवाद के खिलाफ रही है। हालांकि प्रेक्षकों का कहना है कि कांग्रेस ने ही पंजाब में अपने संकीर्ण हितों को लेकर अलगाववाद को प्रश्रय दिया लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कांग्रेस ने पंजाब के अलगाववाद में अपना बहुत कुछ खोया भी है। तीसरी पार्टी जो इन दिनों पंजाब में ताल ठोक रही है वह आम आदमी पार्टी है। आम आदमी पार्टी के साथ सबसे बड़ी समस्या पंजाब के अंदर कोई सर्वमान्य नेतृत्व का नहीं होना है। दूसरी बात, जो खबर छन कर आ रही है उसमें बताया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के अंदर अलगाववादी प्रवृत्ति के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। पंजाब में जो अप्रिय घटनाएं घटी है या घट रही है उसके पीछे चाहे जो लोग हों लेकिन कुछ गुप्तचर संस्थाओं का दावा है कि अकाली और कांग्रेस में दाल नहीं गलने के कारण अब पृथक्तावादी शक्तियां आम आदी पार्टी की ओर रूख कर रही है। हालांकि शायद इस बात की जानकारी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल को हो गयी है और वे बड़ी तसल्ली से इन दिनों पंजाब आप में आॅप्रेषन चला रहे हैं। इससे पार्टी को कितना फायदा होगा यह तो पता नहीं है लेकिन जब इस बात का प्रचार जोरों पर होगा कि आम आदमी पार्टी के अंदर सर्वहितकारी सोंच वालों की कमी हो गयी है तो प्रदेष का 15 प्रतिषत हिन्दू मतदाता अंतिम समय में अपनी नियत बदल भी सकता है, जिसका सीधा लाभ कांग्रेस को होगा और कांग्रेस पार्टी पंजाब फतह करने में सफल हो जाएगी। 
कुल मिलाकर देखें तो पंजाब विधानसभा चुनाव के कारण ही पंजाब में थोड़ी अषांति दिख रही है। इस अषांति पर लगाम लगाने की जरूरत है। यदि इसे चुनावी चष्मे से देखा जाता रहा तो आने वाले समय में पंजाब एक बार फिर से आतंकवाद के दौर में चला जाएगा। दूसरी बात यह है कि अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ जो लोग हैं वे तभी आम आदमी पार्टी को अपना वोट डालेंगे जब उन्हें विष्वास होगा कि आम आदमी पार्टी अलगाववादियों के खिलाफ है और उनके हितों की रक्षा करने में कामयाब है। तीसरी बात यह है कि इस बार के चुनाव में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण बेहद मायने रखता है। यह मत जिस किसी पार्टी को जाएगा जीत उसी की पक्की होगी। हिन्दू मतदाताओं को यदि यह विष्वास हो जाएगा कि उनके हितों की रक्षा करने में आम आदमी पार्टी सफल नहीं होगी तो पंजाब में कांग्रेस को आने से कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए अकाली-भाजपा के पास भी मौका है लेकिन अब देखना यह है कि अकाली-भाजपा गठबंधन इस मौके को अवसर में कैसे परिवर्तित करती है। साथ ही जितने दिनों की सरकार है उसे कम से कम हिन्दू मतदाताओं के हितों के प्रति चिंता करते दिखना जरूर चाहिए अन्यथा चित्र बदलते देर नहीं लगेगी। 
 

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